नई दिल्ली: दिल्ली में प्रतीकात्मक केदारनाथ की स्थापना पर विवाद गहराता जा रहा है। इस मामले में शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि दिल्ली में केदारनाथ की स्थापना पूरी तरह से गलत है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग का महत्व
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने शिव पुराण का हवाला देते हुए कहा, “हमारे यहां शिव पुराण में द्वादश ज्योतिर्लिंग का उल्लेख किया गया है। 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान शिव पुराण में स्पष्ट रूप से बताए गए हैं। केदारनाथ हिमालय में स्थित है और इसे दिल्ली में स्थापित करने का कोई औचित्य नहीं है।”
प्रतीकात्मक केदारनाथ का विरोध
उन्होंने आगे कहा, “यह प्रतीकात्मक केदारनाथ नहीं बन सकता है। केदारनाथ का पौराणिक और धार्मिक महत्व हिमालय में ही है, और इसे किसी भी अन्य स्थान पर स्थापित करना उसके वास्तविक महत्व को कम करेगा।”
धार्मिक आस्था और परंपराएं
शंकरचार्य ने धार्मिक आस्था और परंपराओं पर जोर देते हुए कहा, “हमें अपनी धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए। किसी भी पवित्र स्थान या ज्योतिर्लिंग को उसके वास्तविक स्थान से हटाकर किसी और स्थान पर स्थापित करना धार्मिक दृष्टिकोण से गलत है।”
समर्थन और विरोध
इस मुद्दे पर शंकराचार्य को कई धार्मिक संगठनों और भक्तों का समर्थन मिला है। वहीं, कुछ लोग इसे आस्था और धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा मानकर इसका समर्थन भी कर रहे हैं। लेकिन, ज्यादातर धार्मिक विद्वानों का मानना है कि इस प्रकार की प्रतीकात्मक स्थापना से धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंचती है।
केदारनाथ की महत्ता
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने केदारनाथ की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “केदारनाथ सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है। इसे अपने वास्तविक स्थान से हटाकर कहीं और स्थापित करना उसकी पवित्रता को कम करता है। हमें इसके महत्व को समझना चाहिए और इसे सही स्थान पर ही पूजना चाहिए।”
दिल्ली में केदारनाथ की स्थापना पर विवाद से स्पष्ट है कि धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं का सम्मान अत्यंत महत्वपूर्ण है। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के इस बयान से यह मुद्दा और भी गरम हो गया है, और अब यह देखना होगा कि इस विवाद का समाधान कैसे निकलेगा।
इस प्रकार के विवादों से हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि धार्मिक स्थलों और प्रतीकों का सही स्थान पर पूजन ही हमारी धार्मिकता और आस्था को मजबूत बनाता है।
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