कुछ महीने पहले देश का फुटबॉल राज्य मणिपुर धीरे-धीरे सुलग रहा था। फिर यकायक जलने लगा और मार-काट के चलते सैकड़ों जाने गईं। लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े थे। हालांकि अभी भी हालात पूरी तरह नियंत्रण में नहीं हैं लेकिन कुकी और मैतेई समुदायों की परस्पर दुश्मनी और जानलेवा हमलों पर फिलहाल नियंत्रण पा लिया गया है, ऐसा सरकार का दावा है।
बहुत कम जानते हैँ कि प्रदेश कि गतिविधियों के केंद्र में एक फुटबॉलर बैठा है, जिसकी रक्षात्मक नीति के चलते मणिपुर फिर से अमन चैन के लिए संघर्षरत है। यह फुटबॉलर और कोई नहीं सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का पूर्व खिलाड़ी और राज्य का मुख्यमंत्री बीरेन सिंह मोंगथोम्बम है। बीरेन सिंह बीएसएफ की उस टीम के लेफ्ट-बैक थे जिसने देश के तमाम बड़े टूर्नामेंट में तहलका मचाया और मोहन बागान, जीसीटी, ईस्ट बंगाल और तमाम नामी क्लबों को हराकर डूरंड और डीसीएम जैसे बड़े टूर्नामेंट जीते। आज का सीएम तब सीमा सुरक्ष बल का लेफ्ट-बैक था और उससे पार पाना आसान नहीं था। उस दौर में बीएसएफ की कप्तानी सुखपाल सिंह बिष्ट के हाथों में थी, जो बाद में बीरेन सिंह के रहते टीम के कोच भी बने।
सीएम बीरेन सिंह के बारे में सेवानिवृत पूर्व कप्तान और कोच बताते हैं कि वह अभेद्य रक्षापंक्ति का खिलाड़ी था और रफ-टफ खेलने वाले बीरेन के आगे मंजे हुए फॉरवर्ड भी नहीं चल पाते थे। सुखपाल बिष्ट के अनुसार, 1980 से 83 तक वह खूब खेला और विभागीय जीतों में उसकी भूमिका रही l दो-तीन साल खेलने के बाद वह यकायक गायब हो गया और राजनीति में कूद गया l लेकिन वह दमदार फुटबॉलर के साथ बड़ा इंसान भी है। सालों बाद भी उसका बड़प्पन दिखाई दिया।
बिष्ट के अनुसार, “नए साल पर मैंने जब सीएम को सर बोलते हुए बधाई दी, तो जवाब मिला, सर आप हैं। आपकी कप्तानी और कोचिंग में मैं फुटबॉल खेला हूं। आप मुझे सर ना कहें, सर जी।”
बिष्ट को उम्मीद है कि बीरेन जल्दी ही मणिपुर को प्रगति के पथ पर लौटा लाएंगे। वह सीमा सुरक्षा बल से सेवानिवृत होने के बाद दिल्ली के चैम्पियन क्लब गढ़वाल हीरोज के भी कोच रहे हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |