कारगिल के शूरवीर 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारकर कैप्टन रघुनाथ ने फहराया था तिरंगा

story of veer chakra winner captain raghunath singh fought in kargil war

कारगिल युद्ध के महान नायक कैप्टन विक्रम बत्तरा की शहादत का बदला लेने वाले वीर चक्र विजेता कैप्टन रघुनाथ सिंह की शूरवीरता को आखिर कौन भूल सकता है? क्योंकि इस नायक को दुश्मनों के छाती पर संगीने गाड़कर बर्फ़ीली चोटी पर तिरंगा फहराने का गौरव हासिल है! इससे पहले भी उन्होंने 12 पाकिस्तानी दुश्मनों को मौत के घाट उतारा था!

पठानकोट के गांव घरोटा में रहने वाले वीरचक्र विजेता कैप्टन रघुनाथ सिंह के दिलों-दिमाग में आज भी कारगिल युद्ध से जुड़ी सभी यादें ताजी हैं! रघुनाथ बताते हैं महज 18 माह की नौकरी के पश्चात ही कैप्टन विक्रम बत्तरा को कारगिल जाना पड़ा था! वह स्वयं भी सूबेदार के रूप में उनके साथ थे 22 जून 1999 को द्रास सेक्टर की प्वाइंट 5140 चोटी पर दुश्मनों ने कब्जा हासिल किया हुआ था! इसके बाद कैप्टन बत्तरा ने अपनी साहसी का परिचय देते हुए 10 पाकिस्तानी दुश्मनों को मारकर उस चोटी पर तिरंगा झंडा फहराया था! यहीं नहीं इसके बाद उन्होंने अपने कमांडिंग अफसर को फोन कर कहा कि “सर” यह दिल मांगे मोर और अब आप मुझे दूसरा पड़ाव को पार करने की सलाह दें! इसके साथ ही कैप्टन बत्तरा का यह दिल मांगे मोर का जयघोष आज भी देश में चर्चित है!

कैप्टन बत्तरा अपनी एक जूनियर को बचाने में शहीद हो गए थे!
7 जुलाई, 1999 को रघुनाथ और कैप्टन विक्रम बत्तरा को मास्कों घाटी की प्वाइंट 4875 की चोटी को दुश्मनों से आज़ाद कराने का कार्य सौंपा गया था! ऊंचाई पर कब्ज़ा जमाए बैठे पाकिस्तानी दुश्मनों को निशाना बनाना बेहद मुश्किल हो रहा था! परंतु विक्रम बत्तरा ने हार नहीं मानी, और अपनी सूझ-बुझ से ना केवल पाकिस्तानी दुश्मनों को मौत के घाट उतारा, बल्कि इस दुर्गम चोटी को आज़ाद भी करवा लिया! इसके साथ ही यह मिशन भी पूरा हुआ तभी उनकी नज़र अपने एक जूनियर साथी लेफ्टिनेंट नवीन पर पड़ी, जिनका पांव दुश्मनों द्वारा फेंके गए ग्रेनेड से बुरी तरह जख्मी हो गया था! कैप्टन बत्तरा अपने साथी को कंधे पर उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे परंतु तभी एक पाकिस्तानी सेना ने बहुत करीबी से उनके ऊपर हमला कर दिया! एक गोली उनके सीने को भेदती हुई निकल गई! कैप्टन बत्तरा खून से लथपथ होने के बावजूद पहले नवीन को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया! उसके बाद अपनी राइफल से पाकिस्तानी सेना के पांच सैनिकों को जान से मार गिराया! इसके बाद ही भारत माता का यह वीर सपूत धरती माँ की गोद में सदा के लिए सो गया!

कैप्टन रघुनाथ ने लिया था कैप्टन बत्तरा की शहीदी का बदला
इस कहानी को बयां करते हुए कैप्टन रघुनाथ सिंह की आँखें आज भी नम हो जाती है, और वह अपनी रुन्धे गले से कहते हैं कि वीरता की ऐसी मिसाल कोई दूसरी मिल ही नहीं सकती! किसी दूसरे के लिए खुद की कुर्बानी देने वाले महान नायक विरले ही मिलते हैं! कैप्टन बत्तरा को भारतीय सेना में शामिल होने से पहले लाखों रुपये के पैकेज की नौकरी मिली थी, परंतु उन्होंने इस अवसर को ठुकरा कर भारतीय सेना का चयन किया! कैप्टन बत्तरा की शहीदी के बाद कैप्टन रघुनाथ ने भारत सेना की कमान संभाली! इस दौरान उन्होंने पाक सेना के ग्रुप कमांडर इम्तियाज़ खां समेत 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा! चोटी फतेह करने के बाद जवानों ने बर्फ़ीली चोटी पर तिरंगा फहराकर कैप्टन बत्तरा की शहादत का बदला लिया! इस वीरता के लिए रघुनाथ सिंह को तत्कालीन राष्ट्रपति ने वीरचक्र से सम्मानित किया

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