चंपई सोरेन की राजनीतिक और वैचारिक पृष्ठभूमि के लिहाज से भाजपा में उनके शामिल होने को नफा-नुकसान के तराजू पर तौला जाना भी स्वाभाविक है। ऐसे में सबसे पहले झारखंड में भाजपा की कमजोर कड़ी को ध्यान में रखना होगा जो पहली बार 2019 में हुए विधानसभा चुनाव और हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उभरकर सामने आया।
बीजेपी को नफा या नुकसान?
राज्य ब्यूरो, रांची। Champai Soren News पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के कद्दावर नेता चंपई सोरेन सोमवार को दिल्ली में ही रहे। भाजपा के केंद्रीय नेताओं से उनकी मुलाकात नहीं हुई। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान सोमवार को दिल्ली से बाहर थे।
चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने का मामला झारखंड भाजपा के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान ही देख रहे हैं। भाजपा के संगठन प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी सोमवार को मेरठ में थे। ऐसे में चंपई सोरेन को मुलाकात के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।
भाजपा के हाथ से आदिवासी समुदाय फिसली
पांच वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा 28 में से सिर्फ दो आदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीटों पर कामयाब हो पाई थी। हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा राज्य की सभी पांच आदिवासी सुरक्षित सीटों पर हार गई। इससे यह स्पष्ट है कि चुनाव में जीत-हार में सर्वाधिक भूमिका अदा करने वाला आदिवासी समुदाय भाजपा के हाथ से फिसल चुका है
क्या काम आएंगे चंपई सोरेन ?
भाजपा नेताओं का आकलन है कि चंपई सोरेन आदिवासियों को आकर्षित करने में सहायक साबित हो सकते हैं। वे झामुमो की खूबी और खामी को बखूबी जानते और समझते भी हैं। 14 विधानसभा सीटों वाले कोल्हान प्रमंडल इलाके में उनकी गहरी पैठ भी है। पृथक राज्य के आंदोलन में उनका सक्रिय योगदान रहा है। उनकी अपील कारगर हो सकती है।
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