असम विधानसभा में कर्मचारियों को शुक्रवार की जुम्मे की नमाज के लिए मिलने वाली दो घंटे की छुट्टी को अब समाप्त कर दिया गया है। यह प्रथा 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्लाह द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें हर शुक्रवार को विधानसभा की कार्यवाही को नमाज के लिए दो घंटे तक स्थगित कर दिया जाता था।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का बयान
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया पर इस निर्णय की घोषणा करते हुए इसे विधानसभा की उत्पादकता बढ़ाने और औपनिवेशिक बोझ को हटाने की दिशा में उठाया गया एक अहम कदम बताया। उन्होंने कहा, “असम विधानसभा ने इस फैसले के जरिए उत्पादकता को प्राथमिकता दी है और औपनिवेशिक बोझ को हटाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।”
धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की पुनर्स्थापना
मुख्यमंत्री ने इस कदम को भारत के प्राचीन धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास बताया। उन्होंने इस निर्णय के लिए असम विधानसभा के स्पीकर और सदस्यों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस फैसले का समर्थन किया है।
समाज में प्रतिक्रियाएं
इस निर्णय के बाद समाज में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। जहां कुछ लोग इसे एक सही कदम मान रहे हैं, वहीं कुछ ने इस पर आलोचना भी की है। लेकिन असम सरकार ने इसे राज्य के हित में लिया गया फैसला बताया है, जो लंबे समय से चली आ रही एक प्रथा को समाप्त करने की दिशा में उठाया गया है।
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