उत्तराखंड आने-जाने वाले हर एक व्यक्ति से रोजाना 75 ग्राम कूड़ा कचरा जनरेट हो रहा है, जो कि संपूर्ण रूप में प्रतिदिन 11,350 टन कूडे़ के रूप में सामने आ रहा है। उत्तराखंड के शहरी क्षेत्र में रहने वाला व्यक्ति 300 ग्राम कूड़ा रोजाना जनरेट कर रहा है, जबकि गांव में रहने वाले व्यक्ति का योगदान 200 ग्राम प्रतिदिन है। हमारे निकाय चाहे, वो नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत के रूप में हों या फिर गांव में त्रिस्तरीय पंचायतों के रूप में हों, फिलहाल तो कदम कदम पर इन कचरे के पहाड़ के सामने बौने नजर आ रहे हैं।
कूड़ा संकट के कारण क्या हैं?
शहरों में कूड़े के पहाड़ बनने के कई कारण हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख हैं अनियोजित शहरीकरण, कूड़ा प्रबंधन की कमी, और जागरूकता की कमी। कई शहरों में कूड़े के निष्पादन की योजनाएँ तो हैं, पर उनका सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है। साथ ही, कई लोग अभी भी कूड़े का निस्तारण सही ढंग से नहीं करते, जिससे कूड़े के पहाड़ बढ़ते ही जा रहे हैं। ऋषिकेश के मामले में भी, कचरा प्रबंधन में कमी और नागरिकों की जागरूकता की कमी सबसे बड़ी समस्याएं हैं। इस समस्या को केवल स्थानीय सरकार ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों, व्यवसायियों और पर्यटकों के सहयोग से हल किया जा सकता है।
दिसंबर तक आयेगी रिपोर्ट
हरिद्वार, ऋषिकेश का खास सर्वे, दिसबंर तक रिपोर्ट
हरिद्वार और ऋषिकेश में फ्लोटिंग पॉपुलेशन की वजह से कूडे़ कचरे की सबसे ज्यादा दिक्कत को देखते हुए इन दो जगहों का खास सर्वे शुरू हो गया है। शहरी विकास विभाग ने एशियन डेवलपमेंट बैंक की सहायता से इस सर्वे को शुरू कराया है। दिसंबर 19 तक इस सर्वे की रिपोर्ट विभाग को मिल जाएगी। इसके बाद, फ्लोटिंग पॉपुलेशन से कूडे़ कचरे की समस्या के निदान के लिए कदम उठाए जाएंगे।
क्या है समाधान?
इस समस्या से निपटने के लिए, कई उपाय किए जा सकते हैं। सबसे ज़रूरी है, कूड़ा प्रबंधन प्रणाली को मज़बूत करना। इसमें कूड़े के अलग-अलग कचरे को अलग करके, उनके रिसाइक्लिंग, कंपोस्टिंग, और सही तरीके से निष्पादन की सुविधाओं की व्यवस्था शामिल है। साथ ही, लोगों को कूड़े के उचित निस्तारण के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। शहर में सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को कूड़े को अलग करने, रीसायकल करने, और सही ढंग से फेंकने के तरीके सिखाए जा सकते हैं। सरकार की ओर से कड़े कानून और पर्याप्त निगरानी से भी इस समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है। यहाँ तक कि, दिल्ली जैसे महानगरों से भी सीख ली जा सकती है, जिन्होंने कचरा प्रबंधन के मामले में कुछ सफलता प्राप्त की है। गुजरात और तमिलनाडु राज्यों के सफल प्रयोग भी प्रेरणादायक हैं।
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