मन की आवाज कहलाए कलम से – हमने तो उठकर दौड़ लगाई

we got up and ran

सोचो कैसा वे दिन होगा,
जो सपने देखे वह पूरे होंगे
पर जीत के वह सारे लम्हे,
हार बिना अधूरे होंगे,
इस पल सोचा हार गई मैं,
और उस पल हार सुनिश्चित कर दी।
हमने तो सोचा जीत गए हम,
और जीत हमारे निश्चित कर दी।
तो गिर गए ठोकर खा कर,
और हार मान ली अपने मन से।
हमने तो उठ कर दौड़ लगाई ,
और जीत गए जीवन से।।
वह रो कर खुद को खुद की हार से,
दूर ले जाना चाहते हैं।
आंसू के बदले पागल अपना,
गम भुलाना चाहते हैं।
मायूसी के दलदल में फंस कर,
तुम बाहर कैसे आओगे।
हार भूलाकर दोस्त मेरे,
तुम जीत कभी ना पाओगे।
जहां हार का साया मंडराता था
तुम लौट गए थे उस वन से,
हमने तो उठकर दौड़ लगाई
और जीत गए जीवन से।
तुम हो वही जिसने खुद पर
विश्वास किया ना नाज किया।
अंधेरों के राजा तुमने तो बस
अंधों पर ही राज किया।।
जो गलत लगे उसे गलत कहो,
क्या इतनी हिम्मत ला पाओगे।।
घनघोर अंधेरा छा जाएगा,
पर क्या तुम फिर भी आ पाओगे।
पीड़ा तो होगी पर फिर भी ना रुकना,
यह शर्त लगा लो अपने तन से।
फिर तुम भी उठकर दौड़ लगाओ
और जीत जाओ जीवन से।।

मन की आवाज कहलाए कलम से
रोज़ी।

Rozi 1
रोज़ी
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