वो ज़माना

that era

न रहा वो फूलों का खिलना
न रहा उसका खिड़की पर आना
न रहा वो नुक्कड़ में मिलना
न रहा वो मौसम आशिक़ाना

न रहा मिलके आगन में गाना
न रहा वो दोस्तों का ठिकाना
न रहा वो खेला गलियों का
न रहा मासूम अल्हड़ बचकाना

खिलोनो का अम्बार लिए
मामी मामा का यूहिं चले आना
दूध मलायी और रबड़ी खाने
छुट्टियों में नानी के घर जाना

कदम से कदम मिलाते हुए
दोस्तों के साथ स्कूल जाना
मास्टर जी का झँपाड़ पड़ते ही
सबक़ एकदम याद आ जाना

दिलबर को मन से कर के याद
अक्सर बे-अक्सर खो जाना
पानी ठंडा छिड़क कर छत पर
खुली हवा के झोकों में सो जाना

उन यादों के गलियारों में
ए दोस्त अब न कभी समाना है
उन बदमस्त फ़िज़ाओं का
अब रहा न वो ज़माना है

बस भागम भाग की होड़ में
अनगिनत पैसों का जुट जाना
मतलब परस्ती और ख़ुदगर्ज़ी में
रिश्ते का काफ़ी छुट जाना

एक बड़ी गठरी इखट्टी कर ली
ज़मीन जायदाद और मयखाना
धरती से जाने का आया वक़्त
ईश्वर ने कहा यहीं सब धर जाना

कितने अपने जो हो गए पराए
पर लालच पर किया न प्रतिबंध
वापस कभी भी ये नहीं आए
सेहत ,समय और सम्बन्ध

अब पछताए क्या होत है
जब चिड़िया चुग गयी खेत
सब रिश्ते नाते छूट गए
हाथों में फिसलती बस रेत

सुनील की कलम से

Sunil Kapoor 1 Sunil Kapoor
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