इश्क की दास्तान अब क्या बताएं
बस इतना समझ लीजिए
मैं समझ ना सका और वह समझा ना सकी।
बहुत हसीन थी वह शाम
जिस रोज हुई थी हमारी पहली मुलाकात
मकसद ए इश्क नहीं था
उस वक्त खुदा को तो लिखना था
यह इश्क की दास्तान।
इश्क का तो पता नहीं पर जो तुमसे है
वह किसी और से नहीं।
खामोशियां बोल देती है जिनकी बातें नहीं होती
इश्क उनका भी कायम रहता है
जिनकी मुलाकाते नहीं होते।
इश्क से ही इश्क को है दास्तान
फिर यह मुलाकात है किस काम।
इश्क का दरिया था जिसमें डूब ही जाना था,
पर क्या पता था इश्क के दास्तान पर यह मुलाकात ही हसीन बन जाएगी।
इश्क को इश्क से इश्क हो गया
इश्क ही तो था इश्क में खो गया।
मन की आवाज कहलाए कलम से
रोज़ी।