होमवर्क ना कर पाने का डर भी खुशी में बदल जाता था जब पता चलता था,
आज किसी दोस्त ने भी होमवर्क नहीं किया है।
अजीब बात है इस्कूल के समय के सोमवार बीते सदियां लग जाती थी ,
और रविवार पलक झपकते ही खत्म हो जाता था।
मुंह मासूम सा किताबों के पीछे रहता था,
पर उसे पढ़ने के लिए नहीं मास्टर जी से छुपकर बात करने के लिए।
याद आते हैं वह स्कूल के यार जो साथ मार खाने को भी रहते थे हमेशा तैयार।
रहा आज भी याद है जहां था, स्कूल मेरा वही मेरी नन्ही सी दुनिया थी वही खूबसूरत जहां था स्कूल मेरा।
काश एक दफा फिर स्कूल के दिन आए पक्का इस बार ना जाने का कोई बहाना नहीं बनाऊंगा।
रोज़ी।