मन की आवाज कहलाए कलम से – आप-बीती अपनी

ones own suffering

रोम रोम रो पड़ता है मेरा जब जिस्म लूटा था मेरा, क्या गलती थी मेरी जो दरिंदों ने नोच डाला मेरे तो कपड़े भी मेरे तहजीब में थे तो क्यों हुआ मेरा जिस्म लहू लूहान, क्या खुदा को तरस नही आया मुझ पे,लड़की होने का दाग लग गया मुझ पे अरे दुनिया वालो क्यों नहीं संभाला मुझे क्यों छोड़ दिया मुझे आधे कपड़ों में जब इज्जत ले ही ली थी तो जान भी ले लेते क्यों छोड़ दिया मुझे दुनिया के ताने सुनने के लिए।

रोम रोम रो पड़ता है मेरा जब याद आती है दरिंदों का नोचना खुद को देखती हूं आईने में तो सिसक सिसक कर रोती हूं। अब क्या कहूं मैं इन दुनिया वालों से कोई अच्छा है तो कोई बुरा है।

किस किस को सुनाऊं अपनी आप बीती जब जिस्म लुटा था तो बहुत लोगों ने मजे लिए और कुछ लोग मेरे हालात पर रोए कैसी कशमकश की जिंदगी जी रही हूं मैं। कोई रोता है तो कोई हंसता है मुझ पर लोगों के ताने भी आते हैं और तालियां भी बजते हैं इस दुनिया का कलयुग ही ऐसा है कुछ लोग मुझ पर हंसते हैं तो कुछ लोग मुझे सहारा देते हैं।
ऐ दो तरफे दुनिया वालो अभी भी वक्त है संभल जाओ लड़कियों को खुली सांस में जीने दो।

मन की आवाज कहलाए कलम से
रोज़ी।

Rozi 1

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