अब हम तैयार हुए हैं चाणक्य नीति पर चलने को,
अरे हम अब तैयार हुए हैं,शिवाजी, महाराणा बनने को।
अब हम अपने भीतर सोये बन्दे बैरागी जगाने वाले है,
अरे अब हम वीरो का शोणित कर्ज चुकाने वाले हैं।
अब हम जान चुके
हाँ हाँ हम जान चुके
ये अहिंसा कायरता बनवाती है,
और सिंघो की चुपी,
उनको सर्कस में करतब करवाती है,
अरे जब केसरी ही अहिंसा का चोगा पहने,
तब स्वान सिंहासन पर चढ़ हुकुम चलाते हैं।
हमने स्वीकार किया
मृगराज गर अहिंसक हो तो
कीमत निरपराध चुकाते हैं।
अरे वटवृक्षों की खामोशी ही विष की बेल उगाती है,
और
घोर तिमिर में जुगनू की चमक भी दिनकर बन जाती है।
अरे कोई बताओ
मुझको भी तो समझाओ,
नदियों में उफान है तो!
कौन उसपर बाँध बनाता है?
ये नदियों की ही खामोशी उनको बन्धन में बंधवाता है।
अरे इस शांति अहिँसा के चक्कर मे हमने अपना सबकुछ ही लुटाया था,
और शत्रु को दे-दे जीवन दान अस्तित्व भी अपना मिटाया था।
किन्तु अब हम नही इतिहास को दोहराने देंगें,
ओर नही गौरी को चौहानों से क्षमादान पाने देंगें।
अब जो भी बैरी समरांगण में आएगा
वो निश्चित ही अपनी करनी का फल पायेगा।
अब राम कुपित होकर शर साधन करने वाले हैं,
अब शिशुपाल के शीश पहले गलती पर कटने वाले हैं।
अरे हमारी उस अहिंसा की रट ने ही माता बहनो के बाजार लगवाए थे,
और इस भीरु अहिंसा के चक्कर मे हमने दो देश बनाये थे,
अरे ये अहिंसा अहिंसा की रट से ही वीरता अपनी गवाईं थी
और फिर भी इस अहिंसा की संज्ञा हमने कायरता ही पाई थी।
लेकिन अब हम मान गए
तमस पर दिनकर का प्रहार जरूरी है,
और शत्रु जब भी बैर करे तो उसका प्रतिकार जरूरी है,
हाँ हम मान गए शस्त्र की महिमा बड़ी अनूठी है,
और वीरता के घर मे ही अहिंसा पूजित होती है।
अरे अब हमने स्वीकार किया अहिंसा से मुड़ नही समझा करते,
और जब तक न चाप चढे, ये जलनिधि नही डोला करते।
लेकिन हमने देर करी है बस इतनी सी बात समझने में,
और अनेकों सिंह खो दिए हमने, अहिंसावादी बनने में,
चलो छोड़ो!
बीती बातो पर क्या रोना है,
आगे का विचार करें कि अब क्या होना है।
वचन है भारत माता को
अब गोरी को क्षमा दान नही मिलेगा।
और उसकी पावन माटी में कोई साँप नही पलेगा,
जो भी शोषक और भृष्टाचारी होगा,
उसको फरसे से हम समझाएंगे,
और जो भी माटी के शत्रु है, वो माटी में मिल जाएंगे।