जो भी है चलता जाता है…..
क्यों पीट रहा सर उस चौखट पर
जिसे समय की सीमा लांघ गई…
रुकना है रुक पर याद रहे
ठहरेगा कोई साथ नहीं….
जिस राह निकल कर गया समय
वो राह कहा दोहराता है
जो आज है वो कल क्या होगा
यह वही समय बतलाता है….
जो भी है चलता जाता है…..
जो भी है चलता जाता है…..
क्यों कहूं कि उड़ता वो पंछी
बस तिनका लेकर जाता है
मैं तो कहती हर रोज सुबह
सूरज से मिलकर आता है..
उन्नति का कारोबार सदा
सपनों के दम पर चलता है…
बीज लगे जैसा दिल पर
फल वैसा लगता जाता है…
जो भी है चलता जाता है…
जो भी है चलता जाता है….
क्या सुना कभी वो विश्व कहीं
ना ध्वस्त हुआ या बना नहीं….
सागर थामे ये यह पर्वत भी
क्या कभी जगह से हिला नहीं…
निर्माता नाश स्तंभ टिकी
परिवर्तन की अपनी गाथा है…
कभी रुका नहीं..ना रुक सकता
जो भी है चलता जाता है….
जो भी है चलता जाता है…..
जो आज है वो कल क्या होगा
यह वही समय बतलाता है…..।।
रोज़ी।
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