समस्या जीवन के अभिन्न अंग है, जब तक जीवन हक़ी तब तक समस्या है किंतु जँहा साधारण व्यक्ति समस्याओं के आगे विकल्प खोजता है उनसे दूर भागने का प्रयास करता है वंही एक वीर की क्या भाषा होती है उसपर आधारित एक रचना है।
चलो
उस ओर चलें,
जँहा सागर दंभ लिए बैठा हो,
चलो उस ओर जँहा अभिमानी,
लहरों की शक्ति पर ऐठा हो,
जँहा उठता गर्जन लहरों का घनघोर हों,
चलो वँहा,
जँहा विप्लव सागर का चहुँ ओर हो,
आज उन प्रचंड लहरों से हमे टकराना है,
आपने भीतर के पौरुष को मुझे जगाना है,
चलो उस ओर चलें।
चलो उस ओर चलें,
चलो उस ओर चलें,
जँहा दामिनी अपने बल पर इठलाती हो,
भीषण कर शोर, दिलो को जो दहलाती हो,
अरे !
चमक दिखाकर पौरुष को ललकारा हो जिसने,
और वीरों के भुजबल पर, प्रश्न चिन्ह उतारा हो जिसने,
आज उस बेखौफ दामनी से हम टकराएंगे,
सब शक्ति खंडित कर उसकी, सबक उसे सिखाएंगे,
चलो उस ओर चलें,
चलो उस ओर चलें,
जँहा तूफान उठे हों अम्बर में,
खण्ड-खण्ड करने की शक्ति हो जिसमे,
अरे जिसने बलशाली खुदको सबसे माना हो,
और खुदको प्रकृति नियमो से ऊपर जाना हो,
आज उन तुफानो को दमखम दिखलाना है,
बलशाली है वो, मुझे इस दावे को झुठलाना है।
चलो उस ओर चलें
चलो उस ओर चलें
जँहा दावानल पनपा हो,
सबकुछ राख करने की जिसमे क्षमता हो,
अरे ताप दिखा कर जिसने सबको ही धमकाया हो,
और भीषण ज्वाला से निरपराधों को झुलसाय हो,
आज उस दावानल से समर हमने ठाना है,
अपनी शक्ति के बल से उसका ताप मिटाना है
चलो उस ओर चलें
चलो उस ओर चलें,