2021 का लेखा-झोखा

irony of 2021

कैसी विडम्बना है की दो हज़ार बीस इक्कीस में !

करोना की वजह से सब उल्टा-पुल्टा हो गया था !

तब सब जगह वायु में प्रदूषण ना के बराबर था !

लेकिन चेहरे पर मुखौटा लगाना ज़रूरी है हो गया था !!

जहां सड़कों पर हमेशा गाड़ियों का जाम लगा रहता था !

गाड़ियों का इंतज़ार करती सड़कों पर सन्नाटा है छा गया था !

वो भी एक दौर था जब हम एक दूसरे के गले मिला करते थे !

तब तो एक दूसरे से हाथ मिलाना भी दुशवार हो गया था !!

तब हमारे पास घर की चार-दिवारी में वख़्त ही वख़्त था !

लेकिन वख़्त गुज़ारना कितना मुश्किल है हो गया था !

जहां दोस्तों की महफ़िल में हम जाम से जाम टकराते थे !

उन महफ़िलों का तसव्वुर तब सिर्फ़ ख़्वाबों में ही रह गया था !!

तब जिनकी तिजोरियाँ भरी हुई थी वो भी बेचैन नज़र आते थे !

कहाँ दौलत को खर्चें, ये समझना उनके लिए मुश्किल हो गया था !

और जिनकी तिजोरियों में कभी सिक्कों की खनक भी नहीं थी !

उनको अपने परिवार का रोज़ पेट भरना भी मुश्किल हो गया था !!

जिन्हें हमेशा इंतज़ार रहता था की शनिवार इतवार आएँगे !

और हम कहीं दूर रातें रंगीन करने अपने दोस्तों संग जाएँगे !

क़िस्मत के मारों ने कभी अपने ख़्वाबों में भी ये नहीं सोचा था !

की इस दौर में वो घर में बैठ कर सिर्फ़ झाड़ूँ-पोछा लगाएँगे !!

तब सबको बेसब्री से था इंतज़ार कब करोना की वैक्सीन उन्हें लगेगी !

जो इस कमबख़्त करोना वाइरस को पाताल-लोक में पहुँचायेंगी !

जब तक ये नहीं होता सब का नज़रीया रहना चाहिए पॉज़िटिव !

और यही दुआ करनी चाहिये कि हमारा टेस्ट आए नेगेटिव !!

Pradeep Kuckreja प्रदीप कुकरेजा
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *