“जब एक व्यक्ति अपनेजीवन सेहताश और नि राश हो परि स्थि ति यों के सामनेहार मानकर बठै जाता है,
तब उस हारेहुए व्यक्ति के पास कोई आता है!
वो हारा हुआ व्यकि प्रश्न करता हैतमु कौन हो?
उस प्रश्न का उत्तर हैयेकवि ता।”
और देता तझु को शक्ति दान,
मैंदृढ़ता का प्राणाधार हूँ,
और ति मि र मेंदि नकर का आधार हूँ।
मैं जीनेकी चाहा जागता हूँ,
मैंतझु को लड़ना सि खलाता हूँ,
वि कराल हो जब दशा दि शा!
अरेमैंयोद्धा तझु ेबनाता हूँ।
यद्ुध भमिूमि हो, या हो वि पदाओंका साया,
अगं ारों का हो सागर, या हो अम्बर नेकहर बरपाया!
अपनेपथ पर अडि क तझु ,े मैंही चट्टान बनाता हूँ,
तरेी सारी वि पदाओंको मैंही दरू भगाता हूँ।
मझु को पाकर ही अर्जुनर्जु , धर्म यद्ुध करता है,
कि सी दशा मेंभी वो कदम न पीछेधरता है,
चींटी तक को तो मैंबलवान बनाता हूँ,
मैंही उसको वि कट दीवारों पर चड़वाता हूँ।
मझु को पाकर ही अभि मन्य!ु हाहाकार मचाता है,
मझु को पाकर ही हामि द! टैंकों सेलड़ जाता है,
आज़ाद स्वांस अतिं तिम तक! आज़ाद बनजाता है,
और भगतसि हं हँसतेहँसत!े फांसी पर चढ़ जाता है।
अरे
यूँतो मि त्र घनेरेहोंगेतरेे,
नभ मेंजि तनेतारेहोंगेसाथी तरेे।
पर,
जब हो तूसब हार चकु ा,
तब मैंही हूँजो साथ नि भाता हूँ।
और वि परीत हो जब दशा-दि शा,
मैंहि मगि रि तझु ेबनाता हूँ।
अगर मझु ेछोड़ना तूचाहेगा,
सच कहता हूँतूबहुत पछतायेगा।
अरेज़रा सोच!
मेरेबि ना, तुकि तना ही चल पायेगा?
जब मैंनही साथ तरेे, तब तूक्या कर पायेगा?
मझु ेहारकर हार तरेी सनिुनिश्चि त है,
और बि न मेरेतरेा अस्ति त्व ही अनि श्चि त है।
मैं साहस हूँ।