सारे ईमानदार कूद गए हैं
पैसे बनाने के नये प्रयोग में
कैसे बईमानी से बने रईस
इस कोविद के प्रकोप में
ओकसिमीटर नौसो का , बेंचे अब चार हज़ार में
जेबें अपनी खूब भर लें इस नकारात्मक व्यभिचार में
सिलेंडर बिक रहा अब लाख का इस काले बाज़ार में
जो मिल जाता था पहले केवल सात सात हज़ार में
निम्बू संतरे नारियल हो गए सौ के इस मलिन व्यापार में
जो मिल जाते थे तीस रुपय के हर एक बाज़ार में
ऐम्ब्युलन्स वाले भी अब चाहें मुँह माँगे दाम हैं
हर तरफ़ फैली है त्राही त्राही कहीं नहीं आराम है
सब्ब्ज़ी वाले ,केमिस्ट लूटें हैं इस समस्त संसार को
राहत फिर भी नहीं मिल पा रही
लाचार बीमार को
अब मौत खेल रही है अपना एक घिनौना नंगा नाँच
राजनीतिज्ञ नामुरादों पर कभी ना आएगी कोई आँच
ईमानदार वोहि रह गया जिसको मिला नहीं है मौक़ा
जैसे ही आएगा उसका अवसर वो भी दे जाएगा धोखा
शर्म करो ए ईमानदार लोगों , बंद करो ये जुल्मो सितम
बहुत तबाही है हो चुकी ,अब तुम्हें इस माटी की क़सम
सुनील की कलम से