मां के पेट में एक बच्चा आया
यह सुन मां मुस्कुराए,
पिता उछल पड़े और
परिवार ने मिठाइयां बांटी।
सारा परिवार खुशियों से झूम उठा।
पर जब पता चला मां के गर्भ में बेटी है
तो समाज चिल्ला उठा,
बेटी पाप होती है,
इसे जन्म देना पाप है।
यह सुनकर मां का दिल रो पड़ा,
पर समाज ने उसके दिल को जरा ना समझा,
और अपना फरमान सुना दिया
हत्या कर दो कन्या की।
बस चहकने ही वाली थी एक आवाज,
बिखरने ही वाली थी एक मुस्कान,
जिंदगी को सजाने वाली थी एक नन्ही सी जान,
पर समाज ने सुना दिया उसकी मौत का फरमान,
डूबा दिए लाल रंग में उसके सारे अरमान,
और कर दिया मां की ममता को लहू लुहान।
क्या वजह थी वह जान भी ना पाई,
बेटी होने की सजा है उसने पाई,
रंगीन दुनिया भी वह देख ना पाई,
बेटी थी इसलिए वह जन्म ना ले पाई।
मुझे देख तो लेते शायद में सुंदर होती,
मुझे सुन तो लेते शायद मैं गा सकती,
मौका तो दे देते शायद दिल जीत सकती,
कसूर क्या था मेरा जो मुझे ठुकरा दिया,
मेरे सपनों संग ही मुझे दफना दिया।।
मन की आवाज कहलाए कलम से
रोज़ी।