दोग़लेपन से ये लबरेज़ हैं
छल कपट में बड़े ही तेज हैं
स्वार्थ और कर्रूरता के मारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनो से ही हारे हैं ।
जलियाँवाला बाग में अपनो ने ही
बोछार गोलियों की मारी थी
अंग्रेजों की रहनुमाई कर इन ग़द्दारों ने ही स्वतंत्रता हारी थी
झाँसी की रानी के निर्मम हत्यारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनो से ही हारे हैं
जयचंद जैसे ग़द्दारों ने ही मुहम्मद गोरी को राह दिखाई थी
आस्तीन के सांप ने ही मराठों को शिकस्त दिलवाईं थी
द्वेष की भावना से ग्रस्त ये अंगारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनो से ही हारे हैं
न देशभक्ति का जोश है
न बिकने में कोई संकोच है
बेमानी और बहुत छोटी सोच है
अबतर निर्दयीता के हरकारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनो से ही हारे हैं
आकाशमंडल की बेचतें हैं हवा
हर चीज़ की करते हैं कालाबाज़ारी कोविड के क़हर में भरें झोलीयाँ
दवाइयों के ये बईमान व्यापारी मौत के तांडव केअसली हक़दारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनो से ही हारे हैं
दूरदर्शिता की है अपार दरिद्रता
बदनीयत राजनीती इनकी सभ्यता
मौत का घिनौना रूपलेती व्यवस्था
ये लालच व्यभिचार के किरदारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनो से ही हारे हैं
जेब में जरा हुआ सुराख़ तो सिक्कों से ज़्यादा रिश्ते गिर गए
इनकी बदौलत वतन-ए-हिंद
ग़मगीन सायों में पिर गए
प्रपंच और झूट के ही ये सहारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनो से ही है हारे
चंद सिक्कों के लिए बिक जाती है इनकी अवांछनीय सीरत
ज़मीं पर गिरते लहू से भी नहीं मिलती इनको नेक नसीहत
जहनुम्म फ़क़त के खुले इदारे हैं
हर काल में हम हिंदुस्तानी
अपनी से ही हारे हैं
न खून से कभी न शहादत से , न शौर्य से न संतापों से
हिंदुस्तान ने सदा मात खाई इन आस्तीन के साँपों से
आओ हमें मिल कर इन आस्तीन के साँपो को कुचलना है
धूर्त , क्रूर, पाषाणी, देशद्रोहियों को पैरों तले मसलना है
सुनील की कलम से