नई दिल्ली: महाभारत के महान धनुर्धर अर्जुन को धर्म और सत्य के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। भगवान कृष्ण से गीता का ज्ञान प्राप्त करने वाले अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों की विजय सुनिश्चित की थी। इसके बावजूद, एक समय ऐसा भी आया जब अर्जुन को नर्क में जाना पड़ा। यह घटना उनके जीवन के एक अहम मोड़ को दर्शाती है, जहां उनके घमंड और एक गलती ने उन्हें नर्क का रास्ता दिखाया।
अर्जुन का घमंड
महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन अपने पराक्रम और विजय से अत्यधिक गर्वित हो गए थे। उनका यह घमंड इतना बढ़ गया था कि उन्होंने खुद को सबसे श्रेष्ठ योद्धा मान लिया। अर्जुन, जो पहले धर्म और नीति के अनुसार चलते थे, अब अपने घमंड के कारण अंधे हो गए थे। यह अहंकार उनकी सोच और निर्णयों पर हावी हो गया, और यही उनके पतन का कारण बना।
पाप और नर्क का द्वार
एक दिन अर्जुन शिकार के लिए जंगल में गए। वहां उन्होंने एक निर्दोष हिरण को देखा और बिना किसी कारण उसे अपने बाण से मार दिया। यह कृत्य अर्जुन के अहंकार और क्रोध का परिणाम था। उन्होंने बिना किसी पाप या अपराध के, एक मासूम प्राणी की हत्या कर दी। इस हत्या को अर्जुन ने हल्के में लिया, लेकिन धर्मशास्त्रों के अनुसार, यह एक गंभीर पाप था।
धर्म के अनुसार, किसी भी जीव की हत्या, विशेषकर जब वह निर्दोष हो, एक अत्यंत गंभीर अपराध है। अर्जुन, जो पहले धर्म का पालन करते थे, अपने घमंड में यह भूल गए थे कि हर कर्म का फल अवश्य मिलता है। उनके इस पाप के कारण उन्हें नर्क का सामना करना पड़ा।
महाभारत से सीख
महाभारत का यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा योद्धा या ज्ञानी क्यों न हो, यदि वह अहंकार और अधर्म के मार्ग पर चलता है, तो उसे उसके कर्मों का दंड अवश्य मिलता है। अर्जुन जैसे महान योद्धा को भी अपने घमंड और पाप का परिणाम भुगतना पड़ा।
यह कहानी यह भी बताती है कि धर्म का पालन करते समय विनम्रता और संयम अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। घमंड और अज्ञानता से भरे कर्मों का अंत हमेशा दुःखद होता है, चाहे आप कितने भी महान क्यों न हों।
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