तीर तुक्के नहीं चले

तीर तुक्के नहीं चले

राजेंद्र सजवान
असली शिकारी वो है, जिसकी शिकार के साथ घर वापसी हो या असली तीरंदाज उसके कहेंगे, जिसकी स्वदेश वापसी गले में मेडल के साथ हो। भले ही हमारे तीरंदाज एशियाड और विश्व स्तरीय आयोजनों में पदक जीतते रहे हैं लेकिन पेरिस ओलम्पिक से खाली हाथ और झुके हुए सर के साथ लौट रहे हैं। उनके गले में कोई मेडल नहीं था। यह सही है कि कुछ एक ने अच्छा प्रदर्शन किया और नजदीकी अंतर से पदक चूके लेकिन चैम्पियन वही कहलाता है जो कि पदक जीतकर लाता है, फिर भला वह कांसे का ही क्यों न हो।

जिस देश का मान-सम्मान राम, अर्जुन और एकलव्य जैसे धुरंधर धनुर्धरों के कारण जिंदा है उसके तीरंदाज ओलम्पिक दर ओलम्पिक खाली हाथ और अपमान के साथ लौट रहे हैं। अगले और उससे भी अगले ओलंपिक में पदक जीतने का नारा दिया जा रहा है। अब 2028 के लॉस एंजेलिस ओलम्पिक गेम्स में देश के लिए पदक जीतने के दावे करने वाले हमारे तीरंदाज इधर-उधर की हांकने लगे हैं। किसी को हवा के रुख से शिकायत है तो दूसरा दबाव में आने का बहाना बना रहा है। चार ओलम्पिक खेल चुकी दीपिका कुमारी ने भाग लेने का रिकॉर्ड जरूर बना लिया है परंतु जिस तीरंदाजी पर देश का लाखों-करोड़ों रुपए बर्बाद हुआ उसके लिए अब किसी बहाने की जरूरत नहीं है।

पुरुष वर्ग में तरुणदीप राय भी अपना चौथा ओलम्पिक खेल गए। धीरज बोम्मदेवरा और महिला वर्ग में दीपिका के अलावा भजन कौर और अंकिता भकत ने कुछ एक अवसरों पर अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन रिजल्ट जीरो रहा। रोज की पदक चूकने की खबरों से देश के खेल प्रेमी और आर्चरी को पसंद करने वाले जलते-कुढ़ते रहे। बड़ी उपलब्धि यह रही कि धीरज बोम्मदेवरा और अंकिता भकत की जोड़ी ने मिश्रित टीम स्पर्धा का सेमीफाइनल खेला और हार गई। अर्थात् एकल, युगल और मिश्रित युगल में प्रदर्शन में कहीं कोई सुधार नहीं हुआ।

थोड़ा सा पीछे चलें तो ओलम्पिक के लिए रवाना होने से पहले कुछ तीरंदाजों और कुछ पूर्व खिलाड़ियों ने जोर-शोर से दावे किए और कहा कि इस बार दो-तीन पदक पक्के हैं। हो सकता है कि पदकों की झड़ी लग जाए। सरकार, साई, तीरंदाजी फेडरेशन, कोच और तीरंदाज हैरान है कि क्यों भारत अपने पारंपरिक खेल और युद्ध कला से जुड़े खेल में लगातार शर्मसार हो रहा है। कुछ पूर्व खिलाड़ी कह रहे हैं कि भारतीय तीरंदाजी को पूर्व ओलम्पियन और भारतीय तीरंदाजी के अब तक के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी लिम्बा राम की हाय लगी है। 1992 के बार्सिलोना ओलम्पिक में अपनी स्पर्धा के विश्व रिकॉर्ड की बराबरी करने वाला और तीन ओलम्पिक खेलने वाला लिम्बा राम गंभीर बीमार से ग्रस्त है। वह गंभीर मानसिक बीमारी का शिकार है और पत्नी जेनी के साथ नेहरू स्टेडियम में रह रहा है। जेनी कहती है कि जिस देश ने अपने चैम्पियन को भुला दिया, उसको भला पदक कैसे मिलेंगे। लिम्बा एक श्रेष्ठ तीरंदाज और कोच रहा है। पद्मश्री और अर्जुन अवार्ड पाए हैं लेकिन फिलहाल जिंदगी-मौत से जूझ रहा है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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