राजेंद्र सजवान
बात पिछली सदी के सातवें-आठवें दशक की है। तब, जबकि ज्यादातर भारतीय खेल करवट बदलने की कोशिश कर रहे थे और भारतीय हॉकी आठ ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीतकर इतरा रही थी। लंबी खामोशी के बाद किसी ने हॉकी जादूगर दद्दा ध्यानचंद जी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की आवाज उठाई। धीरे-धीरे उस आवाज में कई आवाजें मिलती चली गईं। जाने-माने हॉकी ओलम्पियनों, हॉकी प्रेमियों और देश के आम एवं खास नागरिकों ने मेजर ध्यानचंद को सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देने की आवाज को बुलंद किया। यह मांग उठती-गिरती रही लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कारों की बंदरबांट करने वाली सरकारों ने तब किसी की नहीं सुनी और ना आज तक कोई सुनवाई हो पाई है।
विडंबना देखिये कि दद्दा ध्यानचंद को सम्मान देने के लिए लगातार मांग की जाती रही और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ले उड़े। 16 नवंबर 2013 को सचिन ने संन्यास की घोषणा की और तत्कालीन सरकार ने उन्हें भारत रत्न से नवाजने की घोषणा भी कर डाली। चार फरवरी 2014 को उन्हें बकायदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथ भारत रत्न दे दिया गया और हॉकी जादूगर के परिजन, मित्र और हॉकी प्रेमी देखते रह गए। हालांकि सचिन को भारत रत्न देने वाली सरकार को जमकर कोसा गया, क्योंकि सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान को तब तक खिलाड़ियों से दूर रखा गया था।
एक बार फिर भारत रत्न विवादों में घिरता नजर आ रहा है। टी-20 वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच राहुल द्रविड़ को भारत रत्न देने की मांग महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने कर डाली तो दो दिन बाद नए चीफ कोच गौतम गंभीर ने एक बार फिर युवराज सिंह को भारत रत्न देने के लिए आवाज उठाई है। गौतम गंभीर की राय में दो वर्ल्ड कप जीतने वाले युवराज सम्मान के सबसे बड़े हकदार बनते हैं। कैंसर पर जीत दर्ज कर फिर से मैदान पर लौटने वाले युवी महान खिलाड़ी हैं और भारत रत्न के सही हकदार बनते हैं। अर्थात् अब ध्यानचंद कहीं पीछे छूट गए हैं और मुकाबला गावस्कर-गंभीर और द्रविड़-युवराज हो गया है। गंभीर पहले भी युवराज के पक्ष में बोल चुके हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले गंभीर ने मेजर ध्यानचंद के नाम की सिफारिश भी की थी।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |