ओलंपिक कोटे के बाद भी चयन की गारंटी नहीं

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इसमें कोई दो राय नहीं है कि ओलम्पिक क्वालीफायर के जरिये खिलाड़ी देश के लिए ओलम्पिक कोटा हासिल करता है। लेकिन अनेक अवसरों पर यह नियम विवाद का कारण बनता आया है। खेल कोई भी हो, जो खिलाड़ी ओलम्पिक का पात्रता प्राप्त करता है उसे अक्सर नियमानुसार फिर से ट्रायल में उतरना पड़ता है। खासकर, कुश्ती में इस प्रकार की परंपरा चली आ रही है, जो कि एक बार फिर से विवाद का कारण बन गई है।
पेरिस ओलम्पिक गेम्स में भारत के इकलौते पहलवान अमन सहरावत ने देश के लिए 57 किलो वर्ग में कोटा हासिल किया है। पेरिस ओलम्पिक अब ज्यादा दूर नहीं है और दुनिया भर के खिलाड़ी अंतिम तैयारियों में जुटे हैं लेकिन अमन नियम के फेर में फंसता नजर आ रहा है। नवनिर्वाचित कुश्ती महासंघ उसे एक और कसौटी पर परखना चाहता है और उसे उसके भार वर्ग के पहलवानों से दो-दो हाथ करने के लिए कहा जा रहा है। लेकिन अमन फिर से वजन घटाने और अन्य प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना चाहता है। वह कह रहा है कि अनेक बार वजन कम कर चुका है, जिससे कमजोरी आती है। एशियाई खेलों में कांस्य और एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाला यह पहलवान अनेकों अवसरों पर अपना दमखम दिखा चुका है।
ट्रायल हो या नहीं, इस बारे में ज्यादातर कोच, बड़े पहलवान और अन्य की राय अमन के पक्ष में है। पूर्व चीफ कोच और देश के सर्वश्रेष्ठ द्रोणाचार्यों में शुमार राज सिंह की राय में अमन को तो अभ्यास के लिए विदेश भेजा जाना चाहिए। उनके अनुसार एक बार सुशील को भी सीधे ओलम्पिक भेजा गया था। उसकी ट्रायल नहीं ली गई थी।
देश के एक अन्य द्रोणाचार्य और गुरु हनुमान अखाड़े के कोच महासिंह राव के अनुसार नियम बेहतरी के लिए बनाए जाते हैं लेकिन कभी-कभार टूटे भी हैं। बेशक, अमन बेहतरीन पहलवान है। उसका फैसला कुश्ती फेडरेशन को करना है। यदि उसे छूट दी जाती हैं, तो महिला पहलवान भी मांग कर सकती है। बेशक, अमन अपने भार में पदक का दावेदार है लेकिन किसी के चाहने से नियम नहीं बदलने वाले।
महाबली सतपाल भारतीय कुश्ती में बड़ा नाम है। सुशील, योगेश्वर, बजरंग, रवि दहिया और अमन जैसे दर्जनों को कुश्ती के गुर सिखाने वाले सतपाल की राय में फैसला फेडरेशन को करना है। बेशक, अमन में चैम्पियन बनने के सभी गुण हैं और उसे विदेश में ट्रेनिंग के लिए भेजा जाना चाहिए लेकिन नियम विरुद्ध जाना भी ठीक नहीं होगा। वह मानते हैं कि फिर से ट्रायल देना लंबी प्रक्रिया है। वजन घटाने, फिर लड़ने और हार-जीत का दबाव कोटा पाने वाले पहलवान पर भारी पड़ सकता है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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