हमेशा की तरह भारतीय हॉकी टीमों से टोक्यो ओलंपिक में बेहतर करने की उम्मीद की जा रही है। खासकर, पुरुष टीम को एक निश्चित पदक का दावेदार माना जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में कोरोना के प्रवेश से पहले भारतीय खिलाड़ियों ने तमाम अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में शानदार प्रदर्शन तो किया ही कई बड़े सम्मान भी जीते। मसलन महिला टीम की कप्तान रानी रामपाल द्वारा विश्व हॉकी रेटिंग में पहला स्थान अर्जित करना। राष्ट्रीय खेल पुरस्कार पाने वाले खिलाड़ियों में रानी रामपाल का खेल रत्न के लिए चुना जाना और अन्य कई उपलब्धियां सराहनीय रही हैं।
बड़ी बात यह है कि भारतीय हॉकी को ओलंपिक और विश्व कप जीते सालों बीत गए फ़िरभी उम्मीद बची है।भुवनेश्वर में खेले गए ओलंपिक क्वालीफायर में भारतीय लड़कियों ने अमेरिका को हरा कर टोक्यो ओलंपिक का टिकट पाया था। महिला टीम ने पहली बार 1980 के मास्को ओलंपिक में भाग लिया था। 36 साल बाद रियो में और अब तीसरे ओलंपिक में खेलने की पात्रता अर्जित कर ली है।पुरुष टीम भी ओलंपिक खेलने का हक पा चुकी है और फिलहाल पुरुष और महिला टीमों की विश्व रैंकिंग चौथे और नौवें नंबर की है।
हालाँकि महामारी के चलते खिलाड़ियों को समुचित अभ्यास का अवसर नहीं मिल पाया लेकिन टीम प्रबंधन और हॉकी इंडिया के अनुसार दोनों ही टीमों के हौंसले बुलंद हैं और कहा यह भी जा रहा है कि दोनों ही भारतीय टीमें खिताब की दावेदार हैं। टीम के विदेशी कोच और हॉकी इंडिया को लगता है कि लंबे समय बाद पुरुष टीम पदक का दावा पेश कर सकती है और महिला टीम पहले चार में स्थान बनाने का माद्दा रखती है|
फिलहाल अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा| कोरोना ने तमाम देशों के खेलों को तहस नहस कर डाला है। खिलाड़ी और कोच वापसी चाहते हैं पर खेलना संभव नहीं हो पा रहै सरकार, खेल मंत्रालय और हॉकी इंडिया का प्रोत्साहन खिलाड़ियों को *मिल रहा* है। आगे जो कुछ होगा शायद कोरोना तय करेगा। जो देश जैसी रणनीति बनाएगा नतीजे भी वैसे ही होंगे। ओलंपिक आयोजन समिति और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति पहले ही कह चुके हैं कि शायद टोक्यो ओलंपिक कोरोना के चलते खेला जाएगा। अर्थात एक मोर्चे पर कोरोना से निपटना होगा और दूसरी चुनौती बेहतर प्रदर्शन की रहेगी।
इतना तय है कि किसी भी स्तर पर बहानेबाज़ी के लए कोई जगह नहीं बचने वाली। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि भारतीय हॉकी टीम हर ओलंपिक में गाजे बाजे के साथ और हवा में बड़े बड़े दावे उछालते हुए जाती है और खाली हाथ लौट आती है। यह भी याद रखें कि 2008 के बीजिंग ओलंपिक के लिए तो क्वालीफ़ाई नहीं कर पाए थे, जबकि लंदन ओलंपिक में बारहवें और अंतिम रहे। यह भी ना भूलें कि हमने अपना आठवाँ ओलंपिक स्वर्ण पदक 1980 के आधे अधूरे मास्को ओलंपिक में जीता था। पिछले चालीस साल सिर्फ़ पिछले रिकार्ड और झूठ पर टिकी दावेदारी के सहारे काट दिए।
खेल मंत्रालय और हॉकी इंडिया अति उत्साह में पड़कर बार बार दावा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि कोरोना के बावजूद भारतीय खिलाड़ी पूरी तरह तैयार हैं और पदक पक्का है। यदि ऐसा हुआ तो भारतीय हॉकी के लिए नये युग की शुरुआत होगी।
Rajender Sajwan
Senior, Sports Journalist
Bilkul sachh