‘यथा राजा तथा प्रजा’ , आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी। यदि यह सच है तो भारतीय फुटबाल के साथ जो कुछ चल रहा है, हैरानी वाली बात कदापि नहीं है। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि यदि एआईएफएफ के अध्यक्ष सचमुच गड़बड़ झाले से जुड़े हैं तो कोई उनके विरुद्ध आवाज बुलंद क्यों नहीं करता?
देश के जाने माने फुटबालर बाई चुग भूटिया को बुरी तरह हरा कर भारतीय फुटबाल पर राज करने का वैधानिक अधिकार पाने के बाद से चौबे लगातार आरोपों में घिरते आ रहे हैं। पहले सचिव शाजी प्रभाकरण पर घोटाले के आरोप लगाए और बहुमत जुटा कर उसे बाहर किया और अब खुद भी लपेटे में आ गए हैं। फेडरेशन के मुख्य कानूनी सलाहकार नीलांजन भट्टाचार्जी ने अपने अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाए तो उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
हैरानी वाली बात देखिए कि दो दिन पहले पूर्व फुटबालर और फेडरेशन अध्यक्ष पर डाक टिकट जारी होती है और फिर उस पर फुटबाल के पैसे के दुरुपयोग का आरोप लगाया जाता है। देश के जाने माने और उनके समकालीन रहे फुटबालर कल्याण चौबे की तरक्की को देख कर हैरान हैं । ज्यादातर की राय में वह एक औसत दर्जे का फुटबाल रहा है लेकिन ऐसा महारथी नहीं था कि उस पर डाक टिकट निकाली जाए। ऐसा सम्मान तो बड़े बड़े खिलाड़ियों और राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल करने वाले नेताओं को भी नहीं मिल पाता।
साफ है कि गंदी राजनीति फुटबाल पर हावी है। हालांकि इस खेल में पहले भी अनेक अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं , जिनके पद पर रहते भारतीय फुटबाल की हवा निकलती चली गई। एक खिलाड़ी के अध्यक्ष बनने के बाद बहुत उम्मीदें बंधी थीं लेकिन लग रहे आरोपों से सारी उम्मीद फुर्र हो गई है। जिस खेल के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारी ही भ्रष्ट होंगे तो भला उसकी प्रगति कैसे हो सकती है! शाजी प्रभाकरन खुद को पाक साफ साबित करने की लड़ाई लड़ रहे हैं । अब अध्यक्ष के सिर पर भी तलवार लटक गई है। फिर भला फुटबाल का भला कैसे होगा? फिलहाल प्रधान मंत्री, गृह मंत्री और खेल मंत्री को पत्र लिखने वाले नीलांजन का भी पत्ता कट चुका है।
भारतीय फुटबाल में जो कुछ चल रहा है, यह तो साफ हो गया है कि एआईएफएफ सबसे कमजोर कड़ी है। जिस फेडरेशन पर दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल को ऊंचाइयों तक ले जाने का दायत्व था वही भ्रष्टाचार में लिप्त है । तो फिर फुटबाल की हवा फुस्स क्यों नहीं होगी ?
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Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |