इगोर को इग्नोर करना ही बेहतर!

igor stimac indian football coach

“मेरे लिए संतोष की बात यह है कि भारतीय फुटबॉलर सीख रहे है और मौके जुटा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया, उज्बेकिस्तान और सीरिया के विरुद्ध उनका प्रदर्शन संतोषजनक रहा,” एएफसी एशियन कप में भारतीय प्रदर्शन के बारे में कोच स्टीमक की राय से भले ही भारतीय फुटबॉल के चाहने वाले सहमत ना हों लेकिन देश के खेल आका, फुटबॉल फेडरेशन के बड़े और कोच की पैरवी करने वाले मीडिया को सबकुछ ठीकठाक लगता है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत को बेहतर रैंकिंग वाली टीमों के सामने हार का मुंह देखना पड़ा। हार का अंतर भी ज्यादा बड़ा नहीं था लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि कोच साहब के संतोष का क्या कारण है? क्या उनकी टीम कम गोल खाने गई थी या कोई उलटफेर करने का इरादा लेकर? तीन मैचों में एक भी अंक नहीं जुटा पाए और कोई गोल तक नहीं कर पाए। सीधा सा मतलब है कि इस टीम में दम नहीं है। रोनाल्डो और मेसी से जिनकी तुलना होती है, वह सुनील छेत्री भी मैदान के बीच सैर-सपाटा करते नजर आए, लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।

39 साल की उम्र तक देश बीस साल देने वाले खिलाड़ी से और अधिक की उम्मीद करना भी ठीक नहीं होगा। बेशक, अब उसे बूट टांग देने चाहिए। लेकिन शायद इगोर ऐसा नहीं चाहेंगे, क्योंकि छेत्री और कुछ अन्य सीनियर खिलाड़ियों की तारीफों के पूल बांध कर उनकी दूकान चलती रहेगी। ऐसी दूकान जिसमें असरदार खिलाड़ी खोजे नहीं मिलेंगे।

इगोर यदि भारतीय खिलाड़ियों को लर्नर बता रहे है तो उनसे ज्यादा उम्मीद भी ठीक नहीं है। लेकिन बेहतर यह होगा कि पके हुए और बेअसर खिलाड़ियों की बजाय वास्तविक लर्नर और सब-जूनियर खिलाड़ियों को तैयार किया जाए। सही मायने में वर्तमान टीम बूढ़ा चुकी है। इस टीम पर देश का करोड़ों रुपया खर्च हुआ है। कई विदेशी कोच आए और झूठ बोलकर टिके रहे। जाते-जाते कह जाते हैं कि भारतीय फुटबॉल कभी नहीं सुधरने वाली।

बेहतर यह होगा कि एआईएफएफ और साई छोटी उम्र के खिलाड़ियों को मौका दे और हो सके तो देसी कोचों को भी आजमा कर देख ले। लेकिन इगोर को इग्नोर करने में ही भलाई है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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