भारतीय फुटबाल फेडरेशन भले ही भारत को फीफा कप में खेलते देखने के सपने संजो रही है लेकिन देश में फुटबाल की हालत बद से बदतर होती जा रही है। भले ही आज आईएसएल और आई लीग जैसे आयोजन एआईएफएफ की प्राथमिकता में शामिल हैं परंतु इन आयोजनों के बावजूद भारतीय फुटबाल में कहीं कोई सुधार नजर नहीं आता। हां, इधर कुछ सालों से खेल की आड़ में खिलवाड़ जैसे नारे जरूर सुनाई पड़ रहे हैं।
कुछ साल पीछे चलें तो देश के हर राज्य, जिले और गली कूचे में सैकड़ों राष्ट्रीय , राज्य स्तरीय और यहां तक कि इंटर कॉलोनी और सांस्थानिक टूर्नामेंट आयोजित किए जाते थे, जिनमें पांच सात सौ से लेकर पांच दस हजार फुटबाल प्रेमी मौजूद रहते थे। आज तमाम आयोजन ठप्प पड़ चुके हैं। पार्कों और मैदानों पर फुटबाल कहीं दिखाई नहीं पड़ती। जहां तक आईएसएल और आई लीग की बात है तो इन मैचों के चलते स्टेडियम में प्रवेश आसान नहीं है। बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक और नॉर्थईस्ट के प्रदेशों को छोड़ दें तो बाकी देश के आयोजन स्थल सूने पड़े रहते हैं। इसलिए क्योंकि फुटबाल पैसे वालों और अय्याश घरानों की बपौती बन गई है। खाली स्टेडियम और घटिया स्तर की फुटबाल को बस चार दिवारी तक कैद कर लिया गया है। एक वर्ग का कहना है कि फुटबाल पर माफिया हावी हो गया है। कुछ बदनाम क्लब, अधिकारी और खिलाड़ी मैचों के नतीजे तय करने के लिए खिलाड़ियों और भटके हुए अधिकारियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। एआईएफएफ भी मानती है कि कहीं न कहीं गड़बड़ हो रही है। लेकिन खुल कर कोई भी सामने नहीं आ रहा।
यह सही है कि भारतीय फुटबाल यूरोप और लेटिन अमेरिकी देशों की नकल कर रही है लेकिन उनके जैसा बनने के लिए सही दिशा में नहीं बढ़ पा रहे। यह हाल तब है जबकि खिलाड़ियों को लाखों करोड़ों मिल रहे हैं। क्लब स्तरीय फुटबाल में खिलाड़ियों को विदेशी खिलाड़ियों के साथ खेलने के मौके मिल रहे हैं लेकिन भारतीय खिलाड़ी शायद कुछ भी नहीं सीख पा रहे।
आलम यह है कि अपनी खामियां और कमजोरियां छिपाने के लिए एआईएफएफ रोज ही कोई न कोई शगूफा छोड़ देता है। बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन सुधार की तमाम कोशिशें लगातार फेल हो रही हैं। बस एक खेल जोर शोर से खेला जा रहा है , जिसे मिली भगत बताया जा रहा है। फेडरेशन और जिम्मेदार लोग इस खेल से वाकिफ हैं या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। इस खेल को “खेला” भी कहा जा रहा है, जोकि देशभर का लोकप्रिय खेल बन गया है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |