The decision to remove Article 370 from Jammu and Kashmir will remain intact, Supreme Court’s decision today after 4 years, 4 months, 6 days

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जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने का फैसला बरकरार रहेगा, 4 साल, 4 महीने, 6 दिन बाद आज सुप्रीम कोर्ट का आया फैसला

NEW DELHI. जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का फैसला बरकार रहेगा। CJI चंद्रचूड़ ने पांच जजों की बेंच का फैसला पढ़ते हुआ कहा, आर्टिकल 370 अस्थायी था। इसे केवल निश्चित समय के लिए लाया गया था। केंद्र की तरफ से लिए गए हर फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। CJI ने कहा कि अगर केंद्र के फैसले से किसी तरह की मुश्किल की बात हो, तब इसे चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट का कहना है कि आर्टिकल 356 के बाद केंद्र केवल संसद के द्वारा कानून ही बना सकता है, ऐसा कहना सही नहीं होगा। 5 अगस्त 2019 को संसद ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था, साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया।

सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी 23 अर्जियां
बता दें कि इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 अर्जियां दी गई थीं, सभी को सुनने के बाद सितंबर में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज फैसले की घड़ी आ गई है। यानि 370 हटने के 4 साल, 4 महीने, 6 दिन बाद आज सुप्रीम कोर्ट यह फैसला सुनाएगा कि केंद्र सरकार का फैसला सही था या गलत। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ आज ये फैसला सुनाएगी। शीर्ष अदालत के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं के तर्क
अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था जो स्थायी हो गया : अनुच्छेद 370 स्थायी हो गया क्योंकि अनुच्छेद 370 में ही बदलाव करने के लिए संविधान सभा की सिफारिश की आवश्यकता थी लेकिन 1957 में संविधान सभा ने काम करना बंद कर दिया।
केंद्र ने संविधान सभा की भूमिका निभाई : याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि संविधान सभा की अनुपस्थिति में, केंद्र ने अप्रत्यक्ष रूप से संविधान सभा की भूमिका निभाई और राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से शक्तियों का प्रयोग किया।
राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं : संविधान जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में किसी भी कानून में बदलाव करते समय सरकार की सहमति को अनिवार्य बनाता है. यह ध्यान में रखते हुए कि जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं थी।
राज्यपाल की भूमिका : याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधान सभा को भंग नहीं कर सकते थे। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि केंद्र ने जो किया है वह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और अंतिम साधन को उचित नहीं ठहराता है।
केंद्र के तर्क
किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ: केंद्र ने तर्क दिया कि संविधान के तहत निर्धारित उचित प्रक्रिया से कोई उल्लंघन नहीं हुआ है और केंद्र के पास राष्ट्रपति का आदेश जारी करने की शक्ति थी। केंद्र ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने जो आरोप लगाया है, उसके विपरीत, जिस तरीके से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, उसमें कोई “संवैधानिक धोखाधड़ी” नहीं हुई थी।
राष्ट्रपति के पास संविधान के तहत शक्ति है : केंद्र ने तर्क दिया कि दो अलग-अलग संवैधानिक अंग – राष्ट्रपति, राज्य सरकार की सहमति से – जम्मू-कश्मीर के संबंध में संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति रखते हैं.
अनुच्छेद 370 का “विनाशकारी प्रभाव” हो सकता था : केंद्र ने तर्क दिया कि यदि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं किया गया तो इसका पूर्ववर्ती राज्य में “विनाशकारी प्रभाव” हो सकता था। केंद्र ने तर्क दिया कि पूर्ण एकीकरण के लिए विलय जरूरी था, अन्यथा यहां एक प्रकार की “आंतरिक संप्रभुता” मौजूद थी। केंद्र ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 एक स्थायी अनुच्छेद नहीं था और इसका मतलब संविधान में केवल एक अस्थायी प्रावधान था। केंद्र सरकार ने कहा कि हमने संविधान से कोई फ्रॉड नहीं किया, 370 हटने के बाद घाटी में अभूतपूर्व बदलाव हुआ है। दशकों से जो वहां अशांति उथलपुथल का माहौल था वो अब शांत है। केंद्र ने कहा कि कश्मीर अकेला राज्य नहीं जिसका विलय शर्तों के साथ भारत संघ में हुआ, ऐसे सभी राज्यों की संप्रभुता को भारत की संप्रभुता में शामिल कर दिया गया था। कश्मीर के मामले में भी ऐसा ही किया गया।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वकील : कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन,दुष्यन्त दवे, गोपाल शंकरनारायण, जफर शाह।
केंद्र की तरफ से इन वकीलों ने रखा पक्ष : अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमण, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी और वी गिरी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रमुख बातें
• अनुच्छेद 370 हटाना संवैधानिक रूप से सही है।

• जम्मू कश्मीर पर राष्ट्रपति का फैसला वैध।

• अनुच्छेद 370 अस्थाई प्रावधान था।

• राष्ट्रपति के पास 370 पर फैसला लेने का अधिकार है।

• 5 अगस्त 2019 का फैसला बरकरार रहेगा।

• विलय के बाद जम्मू कश्मीर संप्रभु राज्य नहीं।

• जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग।

• कोर्ट ने कानूनी मुद्दों पर विचार किया है और प्रक्रिया पर बात।

• राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने से इनकार।

• जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं थी।

• सितंबर 2024 तक हो चुनाव।

• राज्य का दर्जा जल्द बहाल हो।

By
Ms. pooja

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