पिछले कुछ समय से देश में महिला सशक्तिकरण के नारे गूंज रहे हैं। महिलाओं को बढ़ावा देने की आड़ में सरकारें और राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक का आकार प्रकार बढ़ा रही हैं लेकिन सही मायने में महिला शक्ति के उत्थान के लिए कुछ एक ही ईमानदार प्रयास कर रहे हैं। यह भी सच है कि हाल ही भी संपन्न हुए एशियाई खेलों में महिला खिलाड़ियों ने भी पुरुषों की तरह बढ़ चढ़ कर पदक जीते और अपनी प्रगति के दर्शन कराए । लेकिन एक कसक अभी भी बाकी है। वह ये कि क्यों कोई भारतीय महिला ओलंपिक में गोल्ड नहीं जीत पाई है?
यह सही है कि ओलंपिक में पदक जीतना हंसी खेल नहीं है। जब पीटी ऊषा सेकंड के सौवें हिस्से से ओलंपिक पदक चुकीं तो देश को उम्मीद बंधी कि जल्दी ही कोई महिला ओलंपिक में पहला पदक जीत लेगी। कर्णम मल्लेश्वरी ने यह सपना सालों बाद पूरा कर दिखाया । अब आम भारतीय चाहता है कि कोई महिला खिलाड़ी ओलंपिक गोल्ड जीत कर अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे। फिलहाल कोई भी महिला टीम और व्यक्तिगत तौर पर ओलंपिक चैंपियन नहीं बन पाई है।
मल्लेश्वरी के बाद पीवी सिंधु और मीरा बाई चानू सिल्वर तक पहुंच चुकी हैं, जबकि सायना नेहवाल, मैरीकॉम , साक्षी मलिक और लवलीना ब्राँज जीती हैं। अब इंतजार किसी महिला के ओलंपिक चैंपियन बनने का है। क्योंकि महिला खिलाड़ियों के प्रदर्शन में लगातार सुधार हो रहा है इसलिए महिलाओं के ओलंपिक गोल्ड जीतने का सपना भी शीघ्र अति शीघ्र पूरा हो सकता है।
जहां तक पुरुषों की बात है तो हॉकी टीम के खाते में आठ गोल्ड हैं और निशानेबाज अभिनव बिंद्रा एवम जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा गोल्ड जीत चुके हैं। क्योंकि एक भी महिला ओलंपिक चैंपियन नहीं बन पाई हैं इसलिए अन्य क्षेत्रों के मुकाबले महिलाएं थोड़ा पीछे नजर आती हैं
देश की महिलाओं ने राजनीति के शीर्ष पदों पर अपनी उपस्थिति बखूबी दर्ज कराई है। महिला राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और तमाम उच्च पदों को गौरवान्वित कर चुकी हैं । हर क्षेत्र में उनका लोहा माना जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि पहली महिला आईओए अध्यक्ष पीटी ऊषा के नेतृत्व में कोई टीम या खिलाड़ी महिलाओं के वर्षों पुराने सपने को साकार कर दिखाए। तो क्या पेरिस ओलंपिक में महिला हॉकी टीम, एथलेटिक, कुश्ती, मुक्केबाजी, बैडमिंटन या कोई अन्य खेल भरोसे पर खरा उतर पाएगा?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |