भारतीय फुटबाल : एकबार फिर जीरो से शुरू करे

Indian football first qualify for Asiad

बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल म्यांमार, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बहरीन जैसी टीमों को हरा कर या कुछ एक अवसरों पर उनके हाथों हार का घूंट पी कर भारतीय फुटबाल यदि खुद को खुदा समझने की गलती कर रही है तो यह महज बचकानापन ही हो सकता है। ग्वांगझाऊ एशियाड में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन के बाद यह आम राय बन रही है कि भारतीय फुटबाल को यदि विश्व स्तर पर पहचान बनानी है तो लंबा सफर तय करना होगा। जिस किसी ने हाल के भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन को करीब से देखा परखा वह आसानी से भविष्य की तस्वीर उतार सकता है। जानकारों की राय में एक बार फिर जीरो से शुरू करना बेहतर रहेगा।

मेजबान चीन के हाथों बुरी हार पर टीम प्रबंधन, कोच, मीडिया और खिलाड़ियों ने थकान भरी यात्रा और प्रैक्टिस नहीं कर पाने का बहाना बनाया। बांग्लादेश से मात्र एक गोल से जीते और म्यांमार से ड्रॉ खेले, हालांकि दोनों टीमें भारत से बेहतर खेली। भले ही सऊदी अरब का स्तर बहुत ऊंचा है लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने उदेश्यहीन फुटबाल खेलकर , लात घूंसे चलाकर और अनेकों पीले कार्ड देख कर पहले हाफ में मान सम्मान को तो बचाया लेकिन दूसरे हाफ में सम्मानजनक हार का वरण किया। सम्मान जनक इसलिए क्योंकि मात्र दो गोल ही पड़े। वैसे भारतीय खिलाडी प्रतिद्वंद्वी की धुन पर नाच रहे थे।

12 मैचों में अजेय रहने के खोखले नारे लगाने वाली और ब्लू टाइगर्स का गीदड़ पट्टा धारण करने वाली फुटबाल को यदि सचमुच आगे बढना है तो आज और अभी से अगले एशियाई खेलों की राष्ट्रीय टीम के गठन में जुट जाना चाहिए। स्कूल , कालेज और छोटी आयु वर्ग के खिलाड़ियों को शिक्षण प्रशिक्षण दिया जाए तो हम कुछ एक सालों में दमदार टीम तैयार कर सकते हैं। आईएसएल और आई लीग के चले कारतूसों में बारूद खोजना सिर्फ नासमझी होगी।

यह ना भूलें कि देश की सीनियर राष्ट्रीय टीम और अंडर 23 के ज्यादातर खिलाड़ी बूढ़े हो चुके हैं। पिछले कुछ आयोजनों में जिस किसी ने उन्हें खेलते देखा है उन्हें नहीं लगता कि ये खिलाड़ी भारत को बड़े आयोजनों में कामयाबी दिला सकते हैं। उम्र उन पर हावी है। इसलिए क्योंकि कई एक उम्र की धोखाधड़ी की लाठी के सहारे चल रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि नए सिरे से नई टीम का गठन किया जाए। सुनील क्षेत्री पर अत्यधिक निर्भरता ठीक नहीं होगी । वह अपना श्रेष्ठ दे चुका है। रही अन्य खिलाड़ियों की बात तो 2026 के एशियाड तक कुछ एक ही मैदान में टिक पाएंगे। बेशक, अब नए सिरे से नए खिलाड़ी चुनने, नये कोच और नई ऊर्जा की जरूरत है। सिर्फ सैफ और सार्क देशों से जीत लेने से हम कभी चैंपियन नहीं बन सकते।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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