भारतीय फुटबाल की हवा फुस्स

Shame on Indian football

फीफा रैंकिंग में दुनिया के पहले सौ देशों में शामिल होने का सुकून भारतीय फुटबाल से छिन गया है। किंग्स कप में लेबनान के हाथों मिली हार ने भारतीय फुटबाल को फिर से 102 वें स्थान पर पटक दिया है। हालांकि फीफा रैंकिंग के खास मायने नहीं हैं लेकिन शीघ्र अति शीघ्र वर्ल्ड कप खेलने के लिए हुंकार भर रहे भारतीय फुटबाल के आकाओं ने हैसियत का आइना जरूर देख लिया होगा।

बेशक हार जीत खेल का हिस्सा हैं लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि लगातार 12 मैचों में अजेय रहने वाली टीम हार को बर्दाश्त क्यों नहीं कर पा रही। इराक और लेबनान के हाथों मिली हार पर कोच और कप्तान का गुस्सा और बहानेबाजी की हर तरफ निंदा हो रही है। रेफरी से चूक हो सकती है लेकिन देश के ज्यादातर फुटबाल प्रेमी मानते हैं कि अपनी टीम जीत की हकदार कदापि नहीं थी। इराक और लेबनान के खिलाड़ियों ने ज्यादातर समय खेल पर नियंत्रण बनाए रखा जबकि भारतीय खिलाड़ी बिना किसी रणनीति के खेल रहे थे।

एआईएफएफ की नई टीम ने अगले कुछ सालों में ऊंची छलांग लगाने का जो टारगेट सेट किया है, हाल के प्रदर्शन ने कलई खोल दी है। सारी योजनाएं धड़ाम से गिर कर बिखर गई हैं। फेडरेशन के बहानेबाज कह रहे हैं कि सुनील क्षेत्री की गैर मौजूदगी के चलते हार का सामना करना पड़ा। भला एक खिलाड़ी पर इस कदर निर्भरता कहां तक ठीक है। वैसे भी क्षेत्री में वह पहले सी बात नहीं रही। आखिर उम्र भी कोई चीज होती है। कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार फेडरेशन और उसके चाटुकार भले ही ‘ब्लू टाइगर’ जैसे संबोधनों से देश के फुटबाल प्रेमियों को गुमराह करें लेकिन भारतीय फुटबाल ऐसे नहीं सुधरने वाली। विदेशी कोच और चंद सीनियर खिलाड़ियों के नखरे उठाने से काम नहीं बनने वाला।

किंग्स कप के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद एक बार फिर से फुटबाल टीम को एशियाई खेलों में शामिल करने का मुद्दा गरमा गया है। एआईएफएफ पर खेल मंत्रालय को गुमराह करने के आरोप लग रहे हैं । सुनील क्षेत्री, झिंगन और संधू को टीम में शामिल करने की शर्त पर फुटबाल टीम को हरी झंडी दिखाई गई थी। लेकिन आईएसएल की चौधराहट के चलते शीर्ष खिलाड़ियों को उनके क्लब राष्ट्रीय ड्यूटी निभाने से रोक रहे हैं। सीधा सा मतलब है कि फेडरेशन ने साई, आईओए और मंत्रालय को अंधेरे में रखा और उसे आईएसएल ब्लैक मेल कर रहा है। देखना यह होगा कि मंत्रालय और फुटबाल प्रेमियों को धोखे में रखने वाली फेडरेशन पर सरकार क्या कार्यवाही करती है।

जहां तक दर्जन भर मैचों में अजेय रिकार्ड की बात है तो सच्चाई यह है कि ज्यादातर देशों की फुटबाल या किसी भी खेल में कोई हैसियत नहीं है। उनके पास टीम का खर्च उठाने तक के पैसे नहीं हैं। लेकिन भारत में खिलाड़ियों को सब कुछ मिल रहा है। लेकिन खिलाड़ी और फेडरेशन देश को क्या दे रहे है!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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