बेटियों ने बदनाम कुश्ती को बड़ा नाम दिया !

Champion daughters saved the shame of wrestling

कुछ सप्ताह पहले तक देश के बड़े छोटे अखाड़े अपना अस्तित्व बचाने के लिए छटपटा रहे थे। देश भर से खबर आ रही थी कि भारतीय कुश्ती की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। मामला गंभीर था । खासकर जब बगिया के माली पर ही पौध उजाड़ने का आरोप हो तो चिंता स्वाभाविक है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में भारतीय कुश्ती ने फिर से मुख्य धारा से जुड़ने के साथ साथ जोरदार वापसी का संकेत भी दिया है। देश भर के अखाड़े और कुश्ती अकादमियों से शुभ संकेत मिलने लगे हैं। यदि सचमुच ऐसा है तो बड़ा श्रेय कुश्ती प्रदेश हरियाणा की वीर बालाओं – अंतिम पंघाल, सविता दलाल और प्रिया मलिक , उनके परिवार और गुरुओं को जाता है।

पूर्व फेडरेशन अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह पर लगाए गए यौन शोषण के आरोपों की जांच पड़ताल हो रही है । मामला कोर्ट में है l जैसे ही देश के बड़े पहलवानों ने अपने अध्यक्ष पर शिकंजा कसा, उन्हें सड़क से महल तक बदनाम किया और पूरे देश के कुश्ती प्रेमियों को जंतर मंतर पर एकत्र किया, भारतीय कुश्ती की छवि दुनियाभर में खराब हुई। बजरंग, विनेश और साक्षी मलिक के आह्वान पर पूरे देश में हड़पंक मच गया। दुनिया भर में भारत की बदनामी हुई लेकिन सबसे बुरा असर उभरते पहलवानों और उनके खेल प्रेमी अभिभावकों पर पड़ा। देखते ही देखते देश भर के अखाड़े खाली होने शुरू हो गए। खासकर, महिला पहलवानों के मामले में माता पिता जैसे टूट गए थे। उनके सपनों पर बड़ा कुठाराघात होने जैसा था।

फेडरेशन अध्यक्ष पर लगे शर्मनाक आरोपों के बाद बहुत सी लड़कियों ने जैसे कुश्ती को अलविदा कहना शुरू कर दिया था। हरियाणा, दिल्ली, यूपी, महाराष्ट्र, एमपी , पंजाब आदि प्रदेशों के अखाड़ों ने बातचीत में माना कि ज्यादातर अखाड़े और अकादमियां बंद होने की कगार पर हैं। कुछ पूर्व राष्ट्रीय कोचों ने तो महिलाओं को सिखाने पढ़ाने से भी साफ इंकार कर दिया था। चूंकि विनेश, बजरंग, साक्षी और उनके समर्थन में उतरे पहलवान अपने अपने अभियान पर लौट गए हैं इसलिए शायद महिला कुश्ती पर गाज गिरते गिरते रह गई है। तारीफ की बात यह है कि देश के खेल हलकों में अब फिर से महिला कुश्ती की चर्चा शुरू हो गई है। बेशक, कुश्ती को बदनामी और गुमनामी के अंधेरे से बाहर निकालने में अंतिम, सविता और प्रिया की भूमिका अभूतपूर्व रही है, जिन्होंने वर्ल्ड अंडर 20 में गोल्ड जीत कर न सिर्फ देश का नाम रोशन किया अपितु महिला कुश्ती को बर्बाद होने से भी बचाया है। शर्मनाक मुकाम तक पहुंची भारतीय कुश्ती को हरियाणा की इन बहादुर बालाओं का शुक्रगुजार तो होना ही चाहिए।

चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली सभी लड़कियां साधुवाद की पात्र हैं। अब गेंद भारतीय कुश्ती के ठेकेदारों के कोर्ट में है। पूर्व अध्यक्ष पर लगे गंभीर आरोपों के बाद भी फेडरेशन के अवसरवादी संभले नहीं हैं। बार बार फेडरेशन के चुनाव स्थगित होने का सीधा सा मतलब है कि देश में कुश्ती और खेलों का संचालन करने वाले भ्रष्टाचार और व्यविचार में लिप्त हैं। उन्हें सिर्फ पद, प्रतिष्ठा और लूट से मतलब है। इस दुष्कर्म में शामिल तमाम अखाड़ेबाजों, चालबाजों और भ्रष्ट सरकारी प्रतिनिधियों को पदक विजेता बेटियों ने एक मौका दिया है, जिसका मान रखना होगा। वरना…..!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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