भारतीय फुटबाल ने 18 अगस्त को 11:30 बजे डाक्टर बीरूमल नाम के एक सीधे , सच्चे, समर्पित , फुटबाल ज्ञान से लबालब और दिन रात देश की फुटबाल के बारे में सोचने वाले योद्धा को खो दिया है। आजीवन फुटबाल के लिए जीने वाले वीरू को हालांकि कदम कदम पर सरकारी गतिरोध से निपटना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अंततः कैंसर ही उन्हें हरा पाई। लेकिन आजीवन स्वदेशी कोचों की वकालात की, हालांकि विदेशी कोचों से उन्हें कोई परहेज नहीं रहा। साथ ही अपनों को तैयार करने और उन पर भरोसा करने की भी मांग करते रहे।
एनआईएस पटियाला में निदेशक रहे वीरू मल ने भारतीय खेल प्राधिकरण में रहते कई फुटबाल खिलाड़ियों को खोजा, उन्हें आगे बढ़ने के मौके दिए लेकिन खेल पर हावी होती अफसर शाही से तंग आकर बांग्लादेश चले गए और लगभग 13 साल तक बांग्लादेश में रहकर दर्जनों खिलाड़ी तैयार किए। यही खिलाड़ी आगे चल कर भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए सिरदर्द बने। नतीजन पड़ोसी देश में उन्हें कहीं ज्यादा मान सम्मान प्राप्त हुआ।
दिल्ली साकर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और बीरू के मित्र एनके भाटिया को इस बात का अफसोस है कि बीरू एक नामी गिरामी कोच और फुटबाल की गहरी समझ रखने के बावजूद राष्ट्रीय टीम के कोच नहीं बन पाए। उन्हें कोई बड़ा राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिल पाया। शर्मनाक बात यह है कि देश की फुटबाल की मुखिया एआईएफएफ ने भी उन्हें कभी नहीं पूछा और फुटबाल पर लिखी उनकी बेशकीमती किताबों को कोई भाव नहीं दिया गया।
एनआईएस पटियाला में बीरू मल के ट्रेनी रहे मुकेश रिखी के अनुसार भारतीय फुटबाल ने अपना एक नेक सिपाही खोया है, जिसने अपना पूरा जीवन खेल पर खपा दिया। रिखी ने बीरुमल की देखरेख में एनआईएस किया और उनके कोच रहते हरियाणा के लिए खेले । हरियाणा के श्रेष्ठ फुटबालर सुमेश बग्गा भी बीरू मल की कोचिंग के कायल रहे।
डीएसए के पूर्व कोषाध्यक्ष और विभिन्न पदों पर रहे हेमचंद ने अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि वीरूमल की काबिलियत को समझने में भारतीय फुटबाल के कर्णधार विफल रहे। वे एक पढ़े लिखे और बहुआयामी कोच थे। उनकी लिखी किताबों को गंभीरता से पढ़ने और अम्ल में लाने की जरूरत है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |