महाद्वीप में श्रेष्ठता की एक बड़ी चुनौती से पार पाते हुए भारत ने चीन को काफी पीछे छोड़ दिया है और अब भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है। अत्यधिक जनसंख्या होना बड़ी उपलब्धि हो ना हो लेकिन इस बड़ी जनसंख्या में हम कितने चैंपियन खिलाड़ी पैदा कर पा रहे हैं , यह सवाल प्राय खेल हलकों में पूछा जाता है। चालू वर्ष में हमने चीन से आबादी का तमगा छीना है। अब देखना यह होगा कि चीन की मेजबानी में कुछ सप्ताह बाद होने वाले एशियाई खेलों में हमारे खिलाड़ी क्या करिश्मा करते हैं।
ग्वांगझौ एशियाई खेलों में भारत के प्रदर्शन की संभावना को लेकर देश के खिलाड़ी, खेल अधिकारी, आईओए, खेल संघ और आम खेल प्रेमी सभी उत्साहित हैं। सोशल मीडिया, प्रिंट और टीवी चैनलों पर भारत के इरादे जाहिर करते हुए “इस बार सौ पार ” का नारा लगाया जा रहा है। जाहिर है सरकार, खेल मंत्रालय और खिलाड़ियों के संघों ने जोर शोर से तैयारी की है। लेकिन मामला इतना आसान नहीं है। भले ही हमारे खिलाड़ियों ने कुछ खेलों में जोरदार प्रगति की है लेकिन एशियाई खेलों में कुछ खेल मुकाबले ओलंपिक स्तर के हैं, जिनमें मेजबान चीन, जापान और कोरिया द्वारा छोड़े गए पदक ही बाकी देशों के हिस्से आते हैं।
जहां तक भारतीय उम्मीद की बात है तो एथलेटिक, कुश्ती, मुक्केबाजी, हॉकी, वेटलिफ्टिंग, बैडमिंटन और कुछ अन्य खेलों में भारतीय खिलाड़ी बेहतर करते आ रहे हैं। यह भी सच है कि हमारे पास नीरज चोपड़ा, मीरा बाई चानू, सिंधु जैसे खिलाड़ी बहुत ज्यादा नहीं हैं। भारतीय खेलों का सबसे कमजोर पहलू यह है कि जिम्नास्टिक और तैराकी जैसे अधिकाधिक पदक वाले खेलों में हमारे पास खाता खोलने लायक खिलाड़ी भी नहीं हैं। संभवतया यही कारण है कि भारत पदक तालिका में बहुत पीछे रह जाता है।
1918 के जकार्ता एशियाड की पदक तालिका में भारत कुल 69 पदक जीत कर आठवें स्थान पर रहा था, जिनमें मात्र 15 गोल्ड शामिल थे। चीन ने 132गोल्ड सहित कुल 289 पदक जीते और साबित किया कि महाद्वीप में उसका कोई सानी नहीं है। जाहिर है चीन के मुकाबले हमारे पदक ऊंट के मुंह जीरा समान हैं। सीधा सा मतलब है कि हमारा मुकाबला चीन की बजाय खुद से है। चीन , जापान और रिपब्लिक कोरिया, उत्तर कोरिया , इंडोनेशिया, उज़्बेकिस्तान, ईरान, चीनी ताइपे आदि देश भी भारतीय खिलाड़ियों के लिए बड़ी बाधा रहे हैं। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 1951 में अपनी मेजबानी में आयोजित पहले एशियाई खेलों में हमने 15गोल्ड सहित 51पदक जीते थे । अर्थात हम आज भी वहीं खड़े हैं जहां से शुरुआत की थी। यह स्थिति सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के लिए सम्मानजनक कदापि नहीं है। बेहतर यह होगा कि भारतीय खेल आका पदकों की संख्या की डींग हांकने की बजाय सभी खेलों में संतुलित और बेहतर प्रदर्शन करने पर जोर दें । चीन से मुकाबले के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |