तो क्या अमित शाह के फीतले में फंस गए पहलवान!

So are the wrestlers caught in the net of Amit Shah

आंदोलकारी पहलवानों और सरकार के बीच बढ़ते लाड प्यार को देखते हुए देश के कुश्ती पंडित हैरान नहीं है । कारण , उन्हें मालूम है कि विवाद का कोई स्वीकार्य हल इसलिए संभव नहीं है क्योंकि ब्रज भूषण शरण सिंह पर फिलहाल आरोप साबित नहीं हो पाए। पहलवानों ने धरना प्रदर्शन, कैंडल मार्च, पार्लियामेंट तक का मार्च और गंगा में पदक विसर्जित करने की धमकी जैसे प्रयास किए लेकिन आरोपी का बाल भी बांका नहीं हो पाया। किसानों के आंदोलन से जुड़ने के बाद भी जब ब्रज भूषण को गिरफ्तार नहीं किया गया तो अंततः बातचीत का रास्ता अपनाया जा रहा है, जिसकी बुनियाद गृह मंत्री अमित शाह द्वारा रखी गई है।

हाल के घटनाक्रम से तो यही लगता है कि पहलवान बचाव की मुद्रा में हैं गृह मंत्री अमित शाह और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने उन्हें न्याय देने का ढाढस जरूर बंधाया है लेकिन यदि ब्रजभूषण को जेल हो जाती है तो क्या उनका प्रदर्शन समाप्त हो जाएगा और यदि ऐसा नहीं होता तो आगे की प्लानिंग क्या रहेगी? फिलहाल कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं आ रहा। तारीफ की बात यह है कि फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष को गिरफ्तार करने की मांग करने वालों को अब कुछ और लुभावने सपने दिखाए जा रहे हैं।

खेल मंत्रालय के साथ हाल की मधुर बातचीत पर सरसरी नजर डालें तो कुश्ती फेडरेशन के चुनाव, पूर्व अध्यक्ष के करीबियों को चुनाव से दूर रखना, पहलवानों पर दर्ज केस वापस लेना और महिलाओं की शिकायतों की सुनवाई के लिए किसी महिला अधिकारी की नियुक्ति जैसे लाभ पहलवानों के पक्ष में जाते हैं और शायद मंत्रालय राजी भी है। लेकिन असली मुद्दा तो जस का तस है। पहलवान तो सिर्फ ब्रज भूषण की गिरफ्तारी पर अड़े हैं लेकिन एक बड़ा तबका कह रहा है कि उन्हें शायद घेर घोट कर फंसा लिया गया है। यदि ऐसा है तो अब तक की लड़ाई का कोई मायने नहीं रह जाएगा।

पहलवानों का एक वर्ग यह भी चाहता है जिन अखाड़ों, कोचों और पहलवानों के विरुद्ध मामले चल रहे हैं उन्हें समाप्त कर दिया जाए। अर्थात यौन शोषण की लड़ाई से शुरू हुआ आंदोलन बृहद रूप ले रहा है।

लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि यदि पुलिस को बृजभूषण के विरुद्ध पर्याप्त सबूत नहीं मिलते और उनकी गिरफ्तारी नहीं होती तो पहलवानों का आगे का कदम क्या होगा? क्या वे फिर से सड़क पर उतरेंगे? खैर , अभी से कोई राय बनानी ठीक नहीं होगी। इतना तय है कि पहलवानों का आक्रोश फिलहाल कुछ कम हुआ है और वे खेल मंत्रालय के साथ दोस्ती की पींगे बढ़ा कर अपना गम गलत कर रहे हैं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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