हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने हाल ही में दिल्ली में आयोजित बीबीसी के एक कार्यक्रम के चलते स्वीकार किया कि भारतीय हॉकी में बहुत से सुधारों की ज़रूरत है । उन्होंने माना कि अपनी मेजबानी में आयोजित वर्ल्ड कप में हमारे खिलाडी स्तरीय नज़र नहीं आए । कमी कहाँ रही , इस बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में प्रशंसनीय प्रदर्शन दिखाई नहीं दिया ।
पूर्व ओलम्पियन और रक्षा पंक्ति के शानदार खिलाड़ी ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि बड़े बदलाव की जरुरत है, क्योंकि कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें हमारे खिलाडी मज़बूती के साथ उभरकर सामने आए हों । छोटी आयु वर्ग के खिलाडियों पर ख़ास ध्यान देने पर उन्होंने जोर दिया और अब घोषणा कर दी है कि आयुवर्ग के आयोजन उनकी प्राथमिकता में शामिल हैं। 16 और 19 साल तक के खिलाडियों के जोनल टूर्नामेंट आयोजित करने की रुपरेखा को कार्यरूप दिया जा रहा है ।
इसमें दो राय नहीं कि दिलीप को हॉकी के साथ साथ अच्छी खासी प्रशासनिक समझ भी है । उनके मार्गदर्शन से ही ओडिशा हॉकी का गढ़ बना है । लेकिन उन्हें यह याद रखना होगा कि जब तक हॉकी का देश भर में प्रचार प्रसार नहीं होगा खेल का स्तर और परिणामों पर सकारात्कम प्रभाव मुश्किल है । ग्रास रुट से हॉकी का प्रचार प्रसार जरूरी है लेकिन जरुरत इस बात की भी है कि आयुवर्ग की धोखाधड़ी से गंभीरता से निपटा जाए । देश में हॉकी या किसी भी खेल का विकास तब तक संभव नहीं जब तक खिलाडियों की उम्र के फर्ज़ीवाड़े पर रोक नहीं लगाईं जाती ।
दूसरा बड़ा सुधार यह हो सकता है कि टीम पर बोझ बने खिलाडियों को निकाल बाहर किया जाए । बेशक, वरिष्ठ खिलाडियों को सम्मान दिया जाए लेकिन जब वे कोच और सपोर्ट स्टाफ के सगे बन जाते हैं तो अपनी शर्तों पर मौज़ करते हैं। ऐसे खिलाडी टीम का अनुशासन बिगाड़ते आ रहे हैं । एक और बड़ी समस्या यह है कि भारतीय हॉकी के ठेकेदारों ने हॉकी को चंद प्रदेशों और शहरों तक बाँध कर रख दिया है । दिल्ली , पंजाब , महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश , हरियाणा और कई अन्य हॉकी प्रदेश सूने पड़े हैं। हॉकी के गढ़ एक एक कर ध्वस्त हो रहे हैं और बेरोजगार खिलाडियों की कतार लम्बी होती जा रही है ।
कुछ जानकार मानते हैं कि जबसे भारतीय हॉकी ने “हॉकी इंडिया” का गीदड़ पट्टा धारण किया है देश की राजधानी का शिवाजी स्टेडियम , नेशनल स्टेडियम और अन्य राज्यों के बड़े स्टेडियम और प्रमुख आयोजन ठप्प पड़े हैं । जो ओलम्पियन और स्टार खिलाडी हॉकी प्रेमियों के बीच सुकून पाते थे, उन्हें ओडिशा और बंगलौर में कैद कर लिया जाता है या विदेश दौरों पर व्यस्त रहते हैं । करोड़ों खर्च होते हैं लेकिन नतीजा वही ज़ीरो के आस पास । बेहतर होगा खिलाडियों को देश की खुली हवा में सांस लेने के मौके दिए जाएं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |