खेलों पर भारी राजनीति के खिलाड़ी

dirty politics ruining the Indian sports

पिछले कुछ सालों में जहां एक ओर भारतीय खिलाडियों ने अंतर्राष्ट्रीय खेल पटल पर अपनी पहचान को पुख्ता किया है तो साथ ही खेल और खिलाडियों में असुरक्षा की भावना भी घर कर रही है । खासकर , महिला खिलाडी अपने फेडरेशन अधिकारीयों और कोचों को लेकर हैरान परेशान हैं । उन पर यौन शोषण के आरोप लग रहे हैं । शायद ही कोई खेल बचा होगा जिसमें खिलाडियों के साथ दुर्व्यवहार की शिकायतें न मिली हों। ऐसा तब हो रहा है जबकि ज्यादातर खेल राजनीति के खिलाडियों के शिकंजे में हैं ।

एक वर्ग कहता है कि खिलाडी कामयाबी के लिए शॉर्टकट अपनाना चाहते हैं, जिसके लिए खुद भी भटक जाते हैं लेकिन दूसरा वर्ग ऐसा भी है जोकि अलग सोच रखता है और यह मानता है कि ज्यादतर खेलों की बागडोर ऐसे लोगों के हाथ है जिनका खेल से कभी कोई नाता नहीं रहा । उनमें से अधिकतर ऐसे हैं जोकि अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए खेल संघों में घुसपैठ करते हैं और नाम सम्मान के साथ शोहरत पाते हैं । ऐसे लोग जब खेल पर मज़बूत पकड़ बना लेते है तो खिलाडियों और कोचों को कुछ भी नहीं समझते और उन्हें अपने इशारे पर नचाना शुरू कर देते हैं ।

तमाम खेलों में भ्र्ष्टाचार और व्यविचार की बढ़ती घटनाओं को लेकर खिलाडी और उनके अभिभावक असमंजस में हैं और अपने बेटे बेटियों को खेल मैदान में उतारने से पहले कई बार सोचने लगे हैं । ऐसे ही कुछ माता पिता, खेल एक्सपर्ट , खेल पत्रकार और खेल प्रेमी कहने लगे हैं कि खेल संघों की बागडोर खिलाडियों के हवाले कर दी जाए तो समस्या खुद ब खुद हल हो जाएगी । इस बारे में जब आम राय ली गई तो ज्यादातर के अनुसार खिलाडी भी एक इंसान ही हैं और इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उनको सत्ता सौंपने के बाद खेल तरक्की करने लगेंगे और महिला खिलाडी सुरक्षित हो जाएंगी ।

कुछ हॉकी खिलाडियों के अनुसार ओलम्पियन संदीप सिंह हॉकी के मंजे हुए खिलाडी रहे और हरियाणा के खेल मंत्री बने लेकिन बड़ा पद पाने ले बाद भी उन पर आरोप लगे । ओलम्पिक पदक विजेता निशानेबाज राजयवर्धन राठौर देश के खेल मंत्री बनाए गए लेकिन उनके कार्यकाल में भी महिला खिलाडियों की सुरक्षा के लिए कुछ ख़ास नहीं हुआ। एक बड़ा सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि भारत की उड़न परी पीटी उषा पहले नेता बनीं और तत्पश्चात उन्हें भारतीय ओलम्पिक संघ का शीर्ष पद सौंपा गया | हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की भी राजनीति का दामन पकड़ कर आए हैं।

बेशक , ज्यादातर खेल संघों के अध्यक्ष नेता हैं । उनकी आवाज़ सुनी जाती है । उसके लिए खेल और खिलाडियों के लिए फंड जुटाना आसान होता है । यही कारण है कि ज्यादातर खेल संघों के अध्यक्ष राजनीति के खिलाडी हैं । जो खेल राजनीति और राजजनेताओं से दूरी बनाए हैं उनका भला बमुश्किल ही हो पाता है । अर्थात नेताओं पर निर्भरता भारतीय खेलों की मज़बूरी बनती जा रही है, जोकि बाद में बड़ी समस्या भी बन जाती है ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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