स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया नये रूप और रंग रोगन के साथ अवतरित होने जा रहा है । 17 जनवरी को होने वाले चुनाव में कोई भी जीते लेकिन एसजीएफआई का आकार प्रकार काफी कुछ भारतीय ओलम्पिक संघ जैसा ही होगा, जिस पर देश के खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण की सीधी पकड़ रहेगी । पता नहीं यह सब लोकतान्त्रिक तरीके से हो रहा है या नहीं लेकिन इतना तय है कि कुछ फ़र्ज़ी खेलों और उनको पालने वाले अधिकारीयों की अब खैर नहीं ।
यदि यह सच है कि किसी भी देश का खेल भविष्य उस देश के स्कूल -कालेज के खिलाडी तय करते हैं तो यह मान लेना पड़ेगा कि आज़ादी बाद से जो अवसरवादी भारतीय खेलों की नैय्या के खेवैय्या थे उन्होंने देश को खेल मैदान में बहुत पीछे छोड़ दिया । यूँ भी कह सकते हैं कि आज़ादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी भारतीय खेल जहां के तहाँ खड़े हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ लोगों ने आगे बढ़ कर खेलोत्थान के नाम पर गोरखधंधा किया और स्कूली खेलों को अपनी जागीर बना कर चलाया। नतीजन दो चार खेलों को छोड़ दें तो ज्यादातर भारतीय खेल और खिलाडी जीरो से आगे नहीं बढ़ पाए हैं और इस सारे फसाद की जड़ स्कूली खेलों को नियंत्रित करने वाली एसजीएफआई रही , जिसने लुटेरे अधिकारीयों के साथ मिल कर भारत का बचपन बर्बाद करने जैसा कुकर्म किया ।
अच्छी खबर यह है कि देर से ही सही सरकार ने स्कूली खेलों के महत्व को समझ लिया है और यह भी समझ आ गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के खेलों को एक अलोकतांत्रिक व्यवस्था से बचाना जरुरी है और जब तक इन खेलों को भ्र्ष्ट और लुटेरों से नहीं बचाया जाता भारत खेल महाशक्ति नहीं बन सकता ।
जहाँ तक एसजीएफआई के जंगल राज की बात है तो इस फेडरेशन ने जो बड़े बड़े काम किए उन पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है । खिलाडियों को जानवरों की तरह हांकना, उनके हिस्से को चट्ट करना, चयन में धांधली , छोटी आयुवर्ग के खिलाडियों की छाती पर बड़े खिलाडियों को चढ़ाना , उम्र की धोखाधड़ी , राष्ट्रीय स्कूली टीमों में अवांछित और अयोग्य खिलाडियों की भर्ती और खिलाडियों को मिलने वाली सुविधाओं की बन्दर बाँट करना एसजीएफआई का चरित्र रहा है ।
उम्मीद की जा रही है कि एसजीएफआई की नवनिर्वाचित टीम सबसे पहले उन खेलों को बाहर का रास्ता दिखाएगी जोकि अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति से मान्यता प्राप्त नहीं हैं और ना ही किसी खेल संघ द्वारा मान्य हैं। झूठ की बुनियाद पर टिके ऐसे खेलों को एसजीएफआई ने चोर दरवाजे से मान्यता दी लेकिन उनका बाहर जाना तय है जिनमें ज्यादातर मार्शल आर्टस खेल हैं । ज़ाहिर है बहुत से खिलाडियों और कोचों को कठिन समय गुजरना पड़ सकता है । इस बारे में जब कुछ अभिभावकों से बात हुई तो अधिकांश ने माना कि एसजीएफआई ने उन्हें लूटा और उनके बच्चों का भविष्य बर्बाद किया ।
डर इस बात का भी है कि सरकारी तंत्र के हावी हो जाने के बाद स्कूली खेलों के संचालन में गन्दी राजनीति हावी हो सकती है । फिलहाल कोरोना के चलते तीन साल तक राष्ट्रीय स्कूली खेलों का आयोजन नहीं हो पाया । नतीजन हजारों उभरते खिलाडियों का भविष्य अधर में है । देखते हैं बड़ा बदलाव स्कूली खेलों के लिए कितना शुभ और उत्साहवर्धक रहता है ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |