संतोष ट्राफी : चयन में धांधली उत्तर के प्रदेशों पर भारी

Santosh Trophy Unfair selection in northern states

संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैम्पियनशिप का बिगुल बज चुका है । 36 राज्यों के साथ भारतीय रेलवे और सर्विसेस की टीमें शक्ति परीक्षा में उतर रही है । उम्मीद की जा रही है कि इस बार आयोजन कुछ हट कर रहेगा और कुछ हैरान करने वाले परिणाम भी आ सकते है । ऐसा इसलिए क्योंकि अखिल भारतीय फुटबाल संघ (एआईएफएफ) ने भाग लेने वाली टीमों और खिलाडियों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए यह प्रलोभन दिया है कि 76वे संस्करण के सेमी फाइनल और फाइनल मुकाबले सऊदी अरब में खेले जाएंगे ।

जहां तक संतोष ट्राफी में श्रेष्ठ प्रदर्शन की बात है तो पश्चिम बंगाल, पंजाब ,केरल, गोवा ,आंध्रा प्रदेश, रेलवे , महाराष्ट्र , मणिपुर और मिजोरम ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है । खासकर बंगाल ने अधिकाधिक बार खिताब जीतने का रिकार्ड बनाया है । लेकिन कुछ प्रदेश ऐसे हैं जिनका सफर शुरूआती दौर में ही समाप्त हो जाता है, इनमें पंजाब को छोड़ उतर भारत के बाकी राज्य सबसे फिसड्डी रहे हैं।

दिल्ली ने 1944-45 में खिताब जीतने का करिश्मा जरूर किया था लेकिन इसके बाद दिल्ली कभी भी राष्ट्रीय फुटबाल मानचित्र पर उभर कर नहीं आई । इस बार दिल्ली को ग्रुप एक और सम्भवतया फाइनल राउंड की मेजबानी सौंपी जा रही है । मेजबान टीम कैसा प्रदर्शन करती है, जल्द पता चल जाएगा । दिल्ली के आलावा उत्तरभारत के अन्य राज्यों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर यदा कदा ही संतोषजनक प्रदर्शन कर पाए हैं ।

यह सही है किबंगाल, पंजाब, गोवा , आंध्रा , केरल आदि प्रदेश आज़ादी के बाद से खेलों में खासे समृद्ध रहे हैं । खासकर, फुटबाल में इन प्रदेशों ने कई नामी खिलाडी दिए । लेकिन उतर भारत के राज्य इसलिए प्रगति नहीं कर पाए क्योंकि उनकी फुटबाल इकाइयां प्राय गन्दी राजनीति की शिकार रही हैं । राज्य फुटबाल संघों के सूत्रों के अनुसार यूपी उत्तराखंड, राजस्थान , हिमाचल और राजस्थान जैसे प्रदेशों में टीमों के चयन को लेकर प्राय उँगलियाँ उठती रही हैं । विभिन्न टीमों का गठन करने वाले कोच और चयन समितियों की रिपोर्ट को देखें तो उतर भारत के तमाम प्रदेशों की टीमों में आधे से ज्यादा खिलाडी सिफारशी होते हैं ।

दिल्ली , हरियाणा और उत्तराखंड के कुछ पूर्व अधिकारीयों के अनुसार उनके प्रदेशों में वोटों की राजनीति बड़ा रोल निभाती है । पदाधिकारियों के भाई, भतीजे ,बेटे और जानकार बेहतर खिलाडियों को पीछे धकेलकर टीमों में स्थान बना लेते हैं । कुछ असंतुष्टों ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस बार भी बहुत सी टीमों में चयन समिति और कोचों के चहेते खिलाडी चुने गए हैं । इस प्रकार की धांधली उत्तर के प्रदेशों में कुछ ज्यादा ही होती है। यही कारण है कि पंजाब को छोड़ बाकी राज्य भारतीय फुटबाल की मुख्य धारा से कटे हुए हैं ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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