एक साल के स्थगन के बाद टोक्यो ओलंपिक खेलों की तैयारियाँ फिर से ज़ोर पकड़ चुकी हैं। दुनिया भर के देश महामारी से जूझने के साथ साथ खेलों को भी गंभीरता से ले रहे हैं। लेकिन भारत में हमेशा की तरह सिर्फ़ और सिर्फ़ क्रिकेट चल रही है। भारतीय क्रिकेट टीम आस्ट्रेलिया में जीत के झंडे गाड़ चुकी है और अब इंग्लैंड को अपने घर में दबोचने के लिए कमर कसे है। लेकिन हमारे ओलम्पिक खेलों का क्या हाल है, इस बारे में ना तो हमारा खेल मंत्रालय जानता है और ना ही विभिन्न खेलसंघ और खिलाड़ी अपनी तैयारियों के बारे में बता पा रहे हैं। आईपीएल की नीलामी के बाद से तो तमाम खेल जैसे सदमें में हैं। क्रिकेट खिलाड़ियों को मिल रहे करोड़ों के बाद से अधिकांश अविभावक और उनके बच्चे यह सोचने के लिए विवश हैं कि बाकी खेल किसी काम के नहीं हैं। उन्हें खेल कर ना तो नौकरी ही मिल पाती है और ना ही क्रिकेट की तरह लाखों करोड़ों।
भारतीय खेलों पर सरसरी नज़र डालें तो ज़्यादातर खेलों की हालत अच्छी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले सौ सालों में हमारे खेल सौ कदम भी नहीं बढ़ा पाए हैं। आगे बढ़ना तो दूर कुछ खेल उल्टी चाल चल रहे हैं। मसलन हॉकी को ही लें आठ ओलम्पिक स्वर्ण जीतने के बाद से यह खेल पिछले 41 सालों से जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहा है। फुटबाल में दो बार एशियाई खेलों के विजेता रहे, चार ओलम्पिक खेलों में भाग लिया लेकिन पिछले पचास सालों से भी अधिक समय से भारतीय फुटबाल की हवा फुस्स है। एथलेटिक, जिमनास्टिक, और तैराकी में सबसे ज़्यादा पदक दाव पर रहते हैं। इन खेलों में आज तक एक भी भारतीय खिलाड़ी ओलम्पिक पदक नहीं जीत पाया। ले देकर कुश्ती, निशानेबाज़ी, मुक्केबाज़ी, बैडमिंटन, वेट लिफ्टिंग, टेनिस में ही भारत को ओलम्पिक पदक मिले हैं।
भले ही हमारा खेल मंत्रालय, भारतीय ओलम्पिक संघ, खेल संघ और खेल प्रशासक लाख दावे करें और झूठे आँकड़े परोसें लेकिन आम मां बाप यह मान चुका है कि क्रिकेट के अलावा अन्य किसी भी खेल में उनके बच्चे का भविष्य सुरक्षित नहीं है। यह भी सच है कि जब से आईपीएल में रुपयों की बरसात शुरू हुई है बाकी खेलों के लिए कहीं कोई उम्मीद नहीं बची है। एक सर्वे से पता चला है कि क्रिकेट देश के हर बच्चे और युवा का पहला और पसंदीदा खेल बन चुका है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं कि क्रिकेट ओलंपिक खेल नहीं है। क्रिकेट के पीछे हर कोई अंधी दौड़ दौड़ रहा है और इसी अनुपात में बाकी खेलों को खेलने वाले लगातार घट रहे हैं। क्रिकेट में पैसे, शोहरत, मान सम्मान और चमक दमक ने बाकी खेलों को हाशिए पर रख दिया है।
यूँ तो हर आईपीएल की नीलामी में कई अविश्वसनीय रिकार्ड बनते है लेकिन 14 वें संस्करण में दक्षिण अफ्रीका के आल्रआउंडर क्रिस मारिस का आईपीएल इतिहास का सबसे महँगा खिलाड़ी बनना अजूबा मान जा रहा है। उसे राजस्थान रायल्स ने 16.25 करोड़ में अपने साथ जोड़ा। कर्नाटक के कृष्णपा गौतम ने कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैच नहीं खेला। उसे चेन्नै ने 9.25 करोड़ में खरीदा लेकिन 20 लाख रुपए आधार मूल्य वाले तमिलनाडु के शाहरुख ख़ान को किंग्स पंजाब द्वारा 5.25 करोड़ में खरीदा जाना हैरत अंगेज माना जा रहा है। कई खिलाड़ियों को उनकी उम्मीद से बहुत ज़्यादा मिला तो कुछ एक दिग्गज औने पौने में भी बिके। लेकिन कुल मिला कर क्रिकेट ने बाकी भारतीय खेलों को उनकी हैसियत का आईना तो दिखाया ही है साथ ही यह संदेश भी दे दिया है कि क्रिकेट खेलोगे तो भविष्य सुरक्षित रहेगा।
लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि यदि सभी क्रिकेट खेलेंगे तो बाकी खेलों का क्या होगा? और क्या क्रिकेट की आँधी बहुत से भविष्य खराब नहीं कर देगी? लेकिन यही सब चल रहा है। देश के जाने माने क्रिकेट द्रोणाचार्य तारक सिन्हा, गुरचरण सिंह और संजय भारद्वाज मानते हैं कि क्रिकेट ने बाकी खेलों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। इतना पीछे कि अब क्रिकेट की प्रतिद्वंद्विता खुद से रह गई है। बाकी खेलों को उसने मुक़ाबले बाहर कर दिया है| यह हाल तब है जबकि खेल मंत्री और अन्य ज़िम्मेदार लोग भारत को खेल महाशक्ति बनाने का सपना देख रहे हैं।
अन्य खेलों की बड़ी पीड़ा यह भी है कि उनके चैम्पियन खिलाड़ियों की हैसियत किसी पिद्दी से क्रिकेटर जितनी भी नहीं है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि देश के दमदार और धारदार युवा क्रिकेट के मोह्पाश और लाखों करोड़ों के फेर में फँसे हैं। लेकिन हर कोई बड़ा खिलाड़ी नहीं बन सकता। यह भी सही है कि आईपीएल हर युवा का सपना बन गया है।अधिकांश कोचों के अनुसार क्रिकेट सीखने वालों के माँ बाप अक्सर पूछते हैं कि उनका बेटा कब तक आईपीएल खेल पाएगा! देश के लिए खेलना उनकी प्राथमिकता नहीं रही।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |