महिला खिलाडियों का सम्मान क्रिकेट का सम्मान

Gender equility in Indian cricket

“महिला क्रिकेट खिलाडियों को पुरुषों के बराबर मैच फीस”, देश भर के समाचार पत्रों और प्रचार माध्यमों में यह खबर सुर्ख़ियों में है। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में समान वेतन व्यवस्था लागू करने वाला भारत न्यूज़ीलैंड के बाद दूसरा देश बन गया है । उस देश में जहां हर घंटे सैकड़ों महिलाओं के साथ यौनाचार होता है, क्रिकेट में लैंगिक समानता की दिशा में बढ़ाया गया कदम स्वागत योग्य है ।

उधर दूसरी तरफ देश में अंडर 17 महिला विश्व कप फुटबाल का समापन हो चुका है । करोड़ों खर्च कर भारत ने फूंक झोपडी देख तमाशा जैसा आयोजन तो किया लेकिन देश के मीडिया ने उदघाटन समारोह और भारतीय टीम की शर्मनाक हारों के अलावा कुछ भी नहीं दिखाया । दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल के लिए भारतीय प्रचार माध्यमों में जरा सी भी जगह नहीं निकल पाई ।

दोष क्रिकेट का नहीं है । क्रिकेट पर लाख आरोप लगें, उसे कोसा जाए लेकिन यह मानना पड़ेगा कि इस खेल ने तमाम राजनीति के बावजूद गज़ब की तरक्की की है और भारतीय प्रचार माध्यमों को इस कदर मज़बूर कर दिया है कि तमाम टीवी चैंनल और प्रिंट मीडिया उसके सामने नतमस्तक हो गए हैं । क्रिकेट को छापना उनकी मज़बूरी बन गया है, क्योंकि क्रिकेट की आड़ में वे भी खूब छाप रहे हैं ।

इसमें दो राय नहीं कि पिछले कुछ सालों में कुछ एक भारतीय खेलों ने अपने दम पर पहचान बनाई और विश्व स्तर और ओलम्पिक में छुट पुट पदक जीते लेकिन एक भी खेल ऐसा नहीं जिसकी हैसियत क्रिकेट जैसी हो । बाकी खेलों का आलम यह है कि उनके लीग आयोजन कुछेक सालों में दम तोड़ चुके है या एक दो खेल जैसे तैसे चल रहे हैं लेकिन क्रिकेट ने पुरुषों के बाद अब महिला आईपीएल की भी घोषणा कर डाली है ।

देखा जाए तो क्रिकेट ही ऐसा खेल है जोकि सही मायने में लैंगिक समानता की परवाह करता है और उसने पुरुषों के समान महिला क्रिकेट को भी ला खड़ा किया है । । जो काम सरकार नहीं कर पा रही, जिस व्यवस्था को लागु कराने में खेल मंत्रालय नाकाम रहा है उसे क्रिकेट ने बखूबी अंजाम दिया है । सरकार के पास अनेकों महिला खिलाडियों की शिकायतों का कोई जवाब नहीं जबकि क्रिकेट ने अपनी महिला खिलाडियों को भी लाजवाब कर दिया है ।

इसमें दो राय नहीं कि जो क्रिकेट कभी मीडिया का पिछलग्गू था आज वह समाचार माध्यमों को अपने इशारे पर नचा रहा है, क्योंकि उसने अपना क़द बहुत ऊंचा कर लिया है । लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बाकी खेलों की खबर ही ना ली जाए । बांगला देश और ज़िम्बावे के क्रिकेट खिलाडियों को छींक आ जाए तो खबर बना दिया जाता है लेकिन महिला फुटबाल विश्व कप की खबर क्यों खबर नहीं बन पाई ? क्यों बाकी खेल उपेक्षित हैं ? जवाब सीधा है कि बाकी भारतीय खेल घिनौनी मानसिकता से उबर नहीं पा रहे हैं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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