भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली को बीसीसीआई के अध्यक्ष पद पर फिर से मौका नहीं दिए जाने को लेकर देश के प्रमुख राजनीतिक दलों में घमासान छिड़ा है । हालाँकि रोजर बिन्नी को यह पद सौंप दिया गया है लेकिन मामला लगातार तूल पकड़ रहा है । खासकर, पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी दादा के पक्ष में हमेशा की तरह खुल कर मैदान में उतरी हुई हैं । दीदी ने पहले तो प्रधान मंत्री से अनुनय विनय किया और दादा को एक और मौके दिए जाने की प्रार्थना की लेकिन बात नहीं बन पाई । सूत्रों की मानें तो ममता दादा को टीएमसी से जोड़ने की भरसक कोशिश में हैं ।
इसमें दो राय नहीं कि सौरभ ने भारतीय क्रिकेट को एक खिलाडी, कप्तान और अध्यक्ष के रूप में बड़ी सेवाएं दीं और अपना रोल बखूबी निभाया । शुरूआती वर्षों में जगमोहन डालमिया उन पर खासे मेहरबान रहे लेकिन आत्मनिर्भर होने और एक बल्लेबाज और कप्तान के रूप में सफलता अर्जित करने के बाद सौरभ ने क्रिकेट के मैदान और क्रिकेट प्रशासन में अपना प्रशंसनीय योगदान दिया । यही कारण है कि आज देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सौरभ को अपने खेमे में शामिल करने के लिए तरह तरह के खेल खेल रही हैं लेकिन यह सर्वविदित हैं कि दादा जगत दीदी का विशेष सम्मान करते हैं , क्योंकि दीदी मौके बेमौके उनको आशीर्वाद देती रही हैं ।
दीदी यदि दादा के लिए फ्रंट से बैटिंग कर रही हैं तो इसलिए क्योंकि सौरभ एक सफल क्रिकेटर हैं और क्रिकेटरों को भगवान् माने जाने वाले देश में यह कोई अनोखी बात नहीं है । कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा ने भी दादा को पटाने का प्रयास किया लेकिन वह दीदी के लिए विशेष आदर सम्मान रखते हैं और किसी भी कीमत पर दीदी के हाथ के नीचे से अपना सर हटाना नहीं चाहते । यह सब ड्रामा इसलिए चल रहा है क्योंकि क्रिकेट , क्रिकेटरों और क्रिकेट प्रशासकों की चलती है । ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं , भारत के अड़ोस पड़ोस के देशों , पाकिस्तान , बांग्लादेश और श्रीलंका में भी देखने को मिल जाएगा ।
क्रिकेट इतिहास के श्रेष्ठतम हरफनमौला इमरान खान तो वाकई हर फन के माहिर निकले और अपनी प्रसिद्धि के चलते पकिस्तान के प्रधान मंत्री बने । श्रीलंका और बांग्लादेश में भी कई नामी खिलाडी राजनीति के उच्च पदों पर बैठे हैं । ऐसा सौभाग्य अन्य खेलों के खिलाडियों को नहीं मिल पाता । यही कारण है कि भारतीय उपमहाद्वीप चैम्पियन खिलाड़ी पैदा करने के मामले में बहुत पीछे रह गया । जहां तक भारत की बात है तो हमारे पास अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा नाम के दो अव्वल दर्जे के ओलम्पिक स्वर्ण विजेता हैं लेकिन उन्हें एक अदना क्रिकेटर सा सम्मान भी शायद ही मिलता हो । हाँ पदक जीतने पर तमाम नेता और मंत्री उनके साथ अपनी नजदीकियों का बखान जरूर करते हैं लेकिन अन्य खिलाडी क्रिकेट खिलाडियों की तरह नेताओं और राजनीतिक दलों के प्रिय और पसंदीदा कभी नहीं हो सकते
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |