अंबेडकर स्टेडियम के लिए खतरे की घंटी, हो सकता है इंडोनेशिया जैसा हादसा

Ambedkar Stadium Delhi

इंडोनेशिया के जावा प्रांत की दर्दनाक घटना से फुटबाल जगत सन्न रह गया है । दो फुटबाल क्लबों के बीच की हिंसा में सवा सौ लोगों की जान जाने से देश और दुनिया की फुटबाल और उसके कर्णधार शायद ही कोई सबक लेना चाहेंगे । हो सकता है दो चार दिनों के मातम के बाद सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाएगा और फिर किसी अगले नरसंहार पर मातमी धुन बज सकती है । यदि वक्त रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो अपने देश के फुटबाल स्टेडियमों से भी बुरी खबर आ सकती है, जिनमें दिल्ली का अम्बेडकर स्टेडियम भी हो सकता है ।

इंडोनेशिया में जो कुछ हुआ पहली बार नहीं हुआ है । पहले भी कई बार स्टेडियमों की छत गिरने, स्टैंड्स टूटने, समर्थकों के बीच मार पीट, भगदड़ और अन्य कारणों से सैकड़ों जाने जाती रही हैं । इस प्रकार के हादसे भारतीय फुटबाल में भी होते रहे हैं लेकिन उनका रूप स्वरुप इस कदर भयावह नहीं रहा । ऐसा इसलिए क्योंकि दुनियाभर में फुटबाल का स्तर बढ़ा है, फुटबाल प्रेमियों की संख्या बढ़ने के साथ साथ दुर्घटनाएं भी बढ़ी हैं । इधर भारतीय फुटबाल प्रेमी मुट्ठी भर रह गए हैं क्योंकि हमारी फुटबाल में दम नहीं है ।

भले ही देश में कोलकत्ता, मुंबई, गोवा, बंगलुरु , केरल, कर्नाटक में कई अच्छे और स्तरीय स्टेडियम हैं लेकिन जब दिल्ली की बात आती है तो आम फुटबाल प्रेमी और खिलाडी सीधे डाक्टर अम्बेडकर स्टेडियम पहुँच जाता है, जोकि पिछले कई सालों से बीमार है और तुरंत इलाज मांगता है। दिल्ली नगर निगम के इस स्टेडियम की पिच, दर्शक दीर्घाएं और छत की हालत अच्छी नहीं है फिरभी खेल जारी है । कुछ माह पहले वीआईपी स्टैंड की छत का पलस्तर गिर गया तो अफरा तफरी मच गई थी | बाद में लीपा पोती कर दी गई । दर्शकों के बैठने के लिए बने स्टैंड्स और कुर्सियां भी दयनीय स्थिति में हैं तो चेंज रूम , रेफरी रूम, कार्यालय सब कुछ बदहाली के शिकार हैं ।

1982 के दिल्ली एशियाड और तत्पश्चात 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों के चलते इस स्टेडियम को थोड़ा बहुत सजाया संवारा गया , टूटफूट पर चेपियाँ लगाई गईं और रंग रोगन किया गया लेकिन खतरा अभी टाला नहीं है। सबसे बड़ा खतरा स्टेडियम की छत है जोकि कभी भी किसी बड़े आयोजन के चलते चरमरा सकती है । गनीमत यह है कि पिछले कई सालों से अंबेडकर स्टेडियम पर कोई बड़ा अंतर्राष्ट्रीय मैच नहीं खेला गया । डूरंड और डीसीएम जैसे बड़े टूर्नामेंट कब के गायब हो चुके हैं और दिल्ली लीग में खचाखच भरने वाला स्टेडियम अब गिनती के फुटबाल प्रेमियों तक सिमट कर रह गया है ।

खेल प्रेमी यह भी जानते हैं कि किस प्रकार कुश्तियों ,और राजनीतिक रैलियों के आयोजन से स्टेडियम को बर्बाद किया गया । निगम का हमेशा यह रोना रहा है कि फण्ड नहीं है, कर्मचारियों को देने के लिए वेतन नहीं है तो फिर दिल्ली की फुटबाल का दिल कहे जाने वाले स्टेडियम का सुधार कैसे होगा ? क्या बगल में सटे विशाल कोटला स्टेडियम को देखकर जिम्मेदार लोगों को शर्म नहीं आती ?

फिलहाल राजधानी के फुटबाल प्रेमी उपराजयपाल महोदय से उम्मीद कर रहे हैं । दिल्ली और देश कि सरकार को भी गंभीरता दिखानी होगी । वरना उनका खेल प्रोत्साहन का नारा मज़ाक बन कर रह जाएगा ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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