पहली दिल्ली प्रीमियर फुटबाल लीग का आयोजन और ठीक ठाक समापन स्थानीय फुटबाल के लिए एक ऐतिहासिक शुरुआत मानी जा सकती है , जिसका श्रेय निसंदेह दिल्ली साकर एसोसिएशन , उसके पदाधिकारियों और खासकर आयोजन समिति को जाता है । ऐसे में स्थानीय इकाई की सहायक फुटबाल दिल्ली की युवा टीम की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगा ।
कुल मिला कर एकजुटता और बेहतर रणनीति से पहली प्रीमियर लीग कामयाब रही जिसकी देश भर में चर्चा है । नये क्लब वाटिका एफसी का हैरान करने वाला प्रवेश और फिर खिताब जीतना न सिर्फ दिल्ली साकर एसोसिएशन के ऐतिहासिक निर्णय को सही साबित करता है बल्कि लीग आयोजन समिति और दिल्ली के खिलाडियों के कद को भी बढ़ाता है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि दिल्ली की लीग कोलकाता के बाद दूसरे स्थान पर आ खड़ी हुई है ।
लेकिन कब तक ? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि लीग की कामयाबी से मद मस्त दिल्ली के फुटबाल आका फिर से गुटबाजी के शिकार होते नजर आ रहे हैं । कम से कम फ्लाप समापन समारोह तो यही इशारा करता है।
आपने अंत भला सब भला वाली कहावत तो सुनी होगी । इस कसौटी पर प्रीमियर लीग के निर्णायक दिवस को देखें तो सब कुछ ठीक ठाक था। यदि कहीं कोई बड़ी कमी रही तो मुख्य अतिथि की । हर कोई पूछ रहा था कि कौन पुरस्कार वितरण करेगा ? अधिकांश सदस्य , पूर्व खिलाडी , फुटबाल प्रेमी और आयोजन से जुड़े तमाम लोग किसी भारी भरकम कद वाले नेता , अभिनेता या खेल अधिकारी के हाथों पुरस्कार बांटे जाने की उम्मीद कर रहे थे । लेकिन पहाड़ खोदने के बाद चुहिया भी नहीं निकली । खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण, एआईएफएफ या अन्य किसी विभाग का कोई भी चर्चित चेहरा मौजूद नहीं था । ऐसा क्यों? दो महीने तक चली लीग और 110 मैचों का आयोजन करने वाली डीएसए को सांप क्यों सूंघ गया था ?
इसमें दो राय नहीं कि पिछले कुछ महीनों से दिल्ली की फुटबाल में 365 दिनों का कार्यक्रम चल रहा है । महिला, पुरुष प्रीमियर लीग के अलावा एबीसी डिवीजन लीग, फुटसाल, गोल्डन लीग और अन्य आयुवर्ग के आयोजन किए जा रहे हैं । यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि गंभीर आयोजन के मामले में दिल्ली ने देश की तमाम सदस्य इकाइयों को पीछे छोड़ दिया है , जिसका बड़ा श्रेय पूर्व अध्यक्ष और एआईएफएफ महासचिव शाजी प्रभाकरन को जाता है । शाजी की दूरदृष्टि और योजनाबद्ध रणनीति के चलते दिल्ली ने बेहतर आयोजन के मामले में हमेशा वाह वाह पाई लेकिन प्रीमियर लीग का पुरस्कार वितरण समारोह किसी बड़े कद वाले मुख्य अतिथि की गैरमौजूदगी में फीका पड़ गया। सहयड तालमेल और परस्पर विश्वास की कमी के चलते ऐसा हुआ। लगता है कहीं न कहीं एकजुटता और टीम भावना की कमी भी रह गई ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |