हर वक़्त मुझ पर फजीते कसते है
दारू को ये दोस्त जम के पीते हैं
धुआँ ही धुआँ फ़ेलारहता हरतरफ़
कमबख़्त दोस्तमस्त ज़िंदगीजीते हैं
इनसे बड़ा न कोई मिलेगा जुआरी
शैतान और शरारत के ये हैं पुजारी
आफ़त के परकाले हैं ये कमजात
दौलतकी चाह के ये सच्चे व्यापारी
शराबियों सेइनकीजबरन है दोस्ती
एक नम्बर के ये हैं आलसी पोसती
रहते हैं हमेशा नशे की गिरिफ़त में
झूठी है इन मक्कारों की गोष्ठी
निक्कमे हैं इनके अजीब हैं फ़साने
ज़ीनत से कट्रीना तक के हैं दीवाने
ईमानदारी के नाम बदनुमा दाग हैं
शमा में बदमस्त हैं जलते परवाने
पर दोस्ती निभानी इनको है आती
मेरी दुखभरी कहानी इन्हें है सताती
गर कोई भी दोस्त हो मुश्किल में
तो साथ निभाते हैंअक्सर ये साथी
उस वक़्त न देखेंअपना ये कारोबार
दोस्तों के लिए रहते हमेशा तय्यार
एक नहीं यह परखा है हज़ारों बार
कठिन समय में ये हैं यारों के यार
सुनील कपूर की कलम से