खेल महाशक्ति की राह कॉमन वेल्थ से हो कर नहीं जाती

khel mahashkti ki raah

बर्मिंगम कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय खिलाडियों के प्रदर्शन की सरकार, खेल संघ, खिलाडी, अधिकारी, कोच और आम खेल प्रेमी अपने अपने अंदाज में व्याख्या कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि भारतीय खिलाडियों ने 2010 के दिल्ली खेलों से भी बेहतर किया तो दूसरा कहता है कि भारत खेल महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ चला है। चूँकि सरकार खिलाडियों पर करोड़ों खर्च कर रही है इसलिए उसे कुछ भी कहने का हक़ है । वैसे तो खेलों से पहले एक विज्ञापन में यह भी कहा जा रहा था ,’ इस बार सौ के पार’ । फिर अचानक यह विज्ञापन गायब क्यों हो गया ? शायद किसी सरकारी बाबू ने बता दिया होगा कि इस बार सोने का अंडा देने वाली मुर्गी यानी निशानेबाजी खेलों से बाहर है। ऐसे में बड़ा दावा हास्यास्पद हो सकता है ।

इसमें दो राय नहीं कि जिन खेलों में हमारे खिलाडी हमेशा से पदक जीतते आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर में मान सम्मान बरकरार रहा | कुश्ती, मुक्केबाजी, टेबल टेनिस, वेटलिफ्टिंग में मिली सफलता को शानदार कहा जा सकता है | लान बाल, जूडो, महिला क्रिकेट और हॉकी में भी पदक मिले | लेकिन जिस खेल ने देश की सबसे ज्यादा बचाई वह निसंदेह एथलेटिक है, जिसमें भारत के हिस्से आठ पदक आए | नीरज चोपड़ा की गैर मौजूदगी के बावजूद इतने पदक सचमुच बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है| वे सभी खिलाडी भी साधुवाद और बड़े से बड़े सम्मान के पात्र हैं जिन्होंने कोई पदक जीता है|

लेकिन मात्र एथलेटिक की कामयाबी से काम नहीं चलने वाला | यदि देश को सचमुच विश्व खेल मानचित्र पर बड़ा मुकाम पाना है तो एथलेटिक के साथ साथ तैराकी और जिम्नास्टिक में भी बेहतर करना होगा| इन तीनों खेलों में सबसे ज्यादा स्पर्धाएं होती हैं और अधिकाधिक पदक दांव पर रहते हैं| इन खेलों में भारत जीरो पर खड़ा है| तैराकी और जिम्नास्टिक में तो अभी युगों दूर हैं| तो फिर कैसे खेलशक्ति बन पाएंगे? सरकार, खेल मंत्रालय, साईं और तमाम खेल पंडित जानते हैं कि अमेरिका, रूस, जर्मनी, चीन. जापान आदि देश तीन जरुरी खेलों के अलावा कमसे कम दर्जन भर अन्य खेलों में भी बड़ी ताकत हैं| यही ताकत उन्हें ओलम्पिक पदक तालिका में शीर्ष पर बनाए है|

भारतीय खेलों में हॉकी कभी बड़ी पहचान थी, जिसका मान सम्मान जाता रहा है| वैसे भी हॉकी में यदि डूब भी जाएं तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता| बस एथलेटिक, तैराकी, जिम्नास्टिक में ऊंची छलांग की जरुरत है| निशानेबाजी का रोना रोने वाले भूल रहे हैं कि पिछले दो ओलम्पिक से खाली हाथ लौट रहे हैं| कुश्ती, बैडमिंटन,वेटलिफ्टिंग और मुक्केबाजी में थोड़ी और मेहनत और समर्पण चाहिए | हालाँकि अभी एशियाड और पेरिस ओलम्पिक में परीक्षा बाकी है| लेकिन यदि भारत पदक तालिका में पहले बीस देशों में भी स्थान बना पाया तो यह मान लेंगे कि आज़ादी बाद के 75 सालों की मेहनत रंग ला रही है|

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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