एज फ्रॉड और डोप भारतीय खेलों का नासूर

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चीन के 15 साल के जिम्नास्ट और तैराक ओलम्पिक और विश्व चैम्पियन बन जाते हैं तो रोमानिया की 15 साल की जिम्नास्ट ‘परफेक्ट 10’ के साथ तमाम ओलम्पिक मेडल लूट ले जाती है। ब्राजील का 16 साल का गरीब लड़का पेले बन जाता है, तो रूस, जर्मनी, अमेरिका, चीन, रोमानिया और दर्जनों अन्य देशों के खिलाड़ी उस उम्र में ओलम्पिक और विश्व चैम्पियन बन रहे हैं, जिस उम्र में हमारे खिलाड़ी खेल का पहला सबक भी नहीं सीख पाते।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि खेल जगत के ऐसे हजारों खिलाड़ी है, जिन्होंने उस उम्र में तमाम रिकॉर्ड तोड़ डाले, जिस उम्र में आम भारतीय खिलाड़ी उम्र की धोखाधड़ी और डोप की होप के साथ अपना खेल करियर शुरू करते हैं और अभिभावकों और भ्रष्ट कोचों की मक्कारी से अपना करियर बर्बाद कर रहे हैं।

पिछले कुछ दिनों से भारतीय मीडिया एक युवा क्रिकेटर की शान में कसीदे पढ़ है। उसे अब तक का सबसे चमत्कारी खिलाड़ी माना जा रहा है। भले ही क्रिकेट की घटिया सामग्री बांटने वाला मीडिया उसकी स्तुति में लगा है लेकिन अगले ही दिन यही मीडिया उसे एज फ्रॉड की श्रेणी में डाल देता है। उसे 14 की बजाय 18-20 का युवा करार देकर उसका हौसला गिरा रहा है ।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि एज फ्रॉड और नशाखोरी में हमारे खेल रिकॉर्ड सबसे बदतर है और यही दो कारण भारतीय खेलों की तरक्की में बड़ी बाधा हैं। रोज ही कई खिलाड़ी डोप में फेल हो रहे हैं l अफसोस इस बात का है कि भारतीय ओलम्पिक संघ, खेल फेडरेशन, राज्य खेल एसोसिएशन और तमाम इकाइयां सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं। उन्हें अपने स्वार्थों से फुर्सत नहीं मिल पा रही है। एज फ्रॉड और डोप के मामले लगातार बढ़ रहे हैl लेकिन कहीं कोई गंभीरता दिखाई नहीं देती। सरकार और खेल संघों को शायद यह भी पता नहीं कि खेल जगत में हमारी कैसी जग हंसाई हो रही है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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