दिल वालों की दिल्ली

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यह कैसी गज़ब शय है दिल्ली
यह कैसी अजब शय है दिल्ली

इंदर लोक है पर मदिरा का पान नहीं है
गुलाबीबाग में गुल की मुस्कान नहीं है

धोला कुआँ में ना तालाब है न कुआँ है
आनंद पर्वत पर बस धुआँ ही धुआँ है

रोशन नगर में रोशनी नहीं बस अंधेरा है
तो सूर्या नगर में न हुआ कभी सवेरा है

मीठापुर कॉलोनी खटास से है भरी हुई
शिकारपुर शिकारियों से है डरी हुई

पहाड़ गंज में जाने क्यूँपहाड़ विलुप्त है
गुप्ता कॉलोनी में क्यूँ हर बात गुप्त है

दरियागंज से दरिया की गुमनामी है
और प्रेम नगर में प्रेम ही बेमानी है

फूल बाग़ कॉलोनी में फूल नहीं खिलते
अबपड़ोसी भी एक दूसरे से नहीं मिलते

अजमेरी गेट में अजमेर को खोजता हूँ
कश्मीरी गेट में भरी भीड़ को कोसताहूँ

प्रीत विहार में प्रीत की कमी खल गयी
जो करेबईमानी उसकी दुकान चलगयी

उमड़ती यमुना नाला बन कर रह गयी
प्रदूषितहवा बदहवास कर के बह गयी

कूक कोयल की न बारिश की बोछारहै
न लड़कपन न मेल जोल का व्यवहार है

वो हस्ते खेलते नुकड़ के अब ना मोड़ हैं
अब सिर्फ़ पैसे को पाने की ही होर्ड़ है

अब सब उड़ा रहें एक दूजे की खिल्ली
अब ये नहीं रही दिल वालों की दिल्ली
अब ये नहीं रही दिल वालों की दिल्ली

सुनील कपूर की कलम से

Sunil Kapoor 1
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