इस बार नहीं तो कबड्डी का कबाड़ा तय समझें

Kabaddi Not this time then never

वर्ष 2022 के एशियाई खेल फिलहाल स्थगित हो गएहैं। चीन में कोरोना के फैलाव के कारण, आयोजन समिति को यह अप्रिय फैसला लेना पड़ा है। टोक्यो ओलंम्पिक में शानदार प्रदर्शन केबाद कई एक भारतीय खेलों और खिलाड़ियों पर 140 करोड़ की आबादी की नजर टिकी थी। खासकर, एथलेटिक, हॉकी, कुश्ती, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, निशानेबाजी जैसे खेलों में भारतीय खिलाड़ी धमाकेदार प्रदर्शन कर सकते हैं।

खैर, एशियाई खेल देर सबेर लौटेंगे और भारतीय खिलाड़ी “इस बार सौ के पार” वाले नारे पर खरे उतरेंगे। लेकिन यदि कबड्डी की वापसी नहीं हुई तो यह ऐसा धमाका साबित होगा जिसकी आवाज देश के दूर दराज के गांवों और छोटे बड़े शहरों तक सुनी जाएगी।

कारण, कबड्डी ऐसा खेल है जिसने पिछले चार दशकों में कड़े संघर्ष के बाद अन्य भारतीय खेलों की जमात में अपना स्थान बनाया और एशियाड दर एशियाड अपनी उपयोगिता साबित की। यह न भूलें कि एशियाई खेलों में कुछ अवसर ऐसे भीआए जब अन्य खेलों में भारत की झोली खाली रही तब कबड्डी ने ही भारत के मान सम्मान को बचाया। लेकिन लगातर सात स्वर्ण जीतने वाली भारतीय कबड्डी को अंततः ईरान ने धर दबोचा। पिछले एशियाड में भारत को ईरान के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। भारतीय लड़कियां भी ईरानी टीम से हार गईं और इस प्रकार दोनों ही वर्गों में भारतीय आधिपत्य जाता रहा।

आगामी एशियाई खेलों में कबड्डी पर इसलिए पूरे देश की नजर रहेगी क्योंकि प्रो कबड्डी ने इस मिट्टी के खेल को पांच तारा संस्कृति से जोड़ दिया है। मिट्टी से मैट पर पहुंची कबड्डी का कद अब बहुत बड़ा हो गया है। प्रो लीग में खेलने वाले खिलाड़ी कभी दाने दाने के लिए मोहताज थे। आज वे लाखों करोड़ों में खेल रहे हैं। उनके देखा देखी हजारों बच्चे और युवा कुश्ती की तरह कबड्डी के भी दीवाने बन गए हैं और देश के लिए खेलना चाहते हैं। उन्हें क्रिकेट की तरह इस खेल में भी भविष्य सुरक्षित नजर आता है।

लेकिन आज कबड्डी के लिए सबसे बड़ी समस्या खुद का अंतर्कलह बन गया है। गुटबाजी की शिकार कबड्डी का खेल कोर्ट कचहरी में खेला जा रहा है। दो गुटों का अपना अपना दावा है। चार साल से गुटबाजी की कबड्डी खेली जा रही है, जिसका नतीजा पिछले एशियाड में भुगत चुके हैं। लेकिन कबड्डी के कर्णधार अब भी नहीं समझ रहे। एकजुटता की कमी साफ नजर आ रही है। यदि अगले कुछ दिनों में भी दोनों गुट एक नहीं हुए और सर्व सम्मति से नई टीम का गठन नहीं किया गया तो कुछ भी हो सकता है।

फिलहाल कुछ खबरें छन कर आ रही हैं, जिनसे पता चलता है कि पिछली बार की तरह टीम के चयन और कोचों की नियुक्ति को लेकर बवाल मच सकता है। यदि अनुभव और श्रेष्ठता को महत्व नहीं दिया गया तो टीम दो फाड़ भी हो सकती है, जिसके नतीजे दुखद हो सकते हैं।

जानकारों और विशेषज्ञों की मानें तो ईरान फिर से भारी पड़ सकता है। ऐसा हुआ तो भारत में कबड्डी की हालत और खराब हो सकती है। श्रेष्ठ कोच और सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों का चयन ही कबड्डी को फिर से पटरी पर ला सकते हैं, जिसके लिए पारदर्शिता और साफ सुथरा चयन जरूरी है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *