नस्लवाद दुनिया की समस्या, पूरी तरह खात्मा जरूरी।

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गनीमत है कि सिडनी क्रिकेट टेस्टमें कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ और तीसरे दिन का खेल ठीक ठाक निपट गया। लेकिन चिंता इस बात की है कि  क्यों नस्लवाद क्रिकेट का पीछा नहीं छोड़ रहा? क्यों रह रह कर नस्लवाद क्रिकेट का पीछा नहीं छोड़ रहा!      भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने अपने खिलाड़ी *जसप्रीत बुमरा और मोहम्मद  सिराज* के विरुद्ध दर्शकों द्वारा की गई नस्ली टिप्पणी के बारे में बाक़ायदा मेजबान बोर्ड से शिकायत दर्ज़ की है। कहा यह जा रहा है कि एक  दर्शक ने शराब पी हुई थी। भले ही मैच रेफ़री और आईसीसी अधिकारियों तक शिकायत पहुँच गई है पर सवाल यह पैदा होता  है कि कोरोना काल के चलते कैसे कोई शराबी दर्शक स्टेडियम में जा पहुँचा? और क्यों उसके विरुद्ध सख़्त कार्रवाही नहीं की गई?
     
यह ना भूलें कि *अफ्रीकी मूल के अमेरिकी  जार्ज फ्लायड की दर्दनाक  मौत के बाद अमेरिका कैसे जल उठा* था और किस तरह से नस्लवाद के विरुद्ध पूरी  दुनिया एकजुट हुई थी।  लेकिन रह रह कर नस्लवाद मानव सभ्यता को चिढाता सताता रहा है।  ऐसा नहीं है कि फ्लायड की  हत्या के बाद अमेरिका और विश्व के  काले गोरे बंट गए थे।  इस लड़ाई में समझदार और उदार हृदय गोरों ने भी नस्लवाद को जमकर कोसा था। 
       
जहाँ तक खेलों में नस्लवाद की बात है तो सिर्फ़ *क्रिकेट में ही नहीं फुटबाल, बेसबाल, एथलेटिक और अन्य खेलों में भी रंगभेद* और नस्लवाद ने समय समय पर अपना रंग दिखाया और विवाद खड़े हुए हैं। वेस्ट इंडीज के क्रिकेट खिलाड़ियों *डेरेन सैमी और क्रिस गेल*  जहाँ एक ओर भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के दीवाने हैं तो साथ ही उन्होने आईपीएल मैचों के चलते नस्ली टिप्पणियों के भी आरोप लगाए। भारतीय स्पिन गेंदबाज हरभजन सिंह ने भी  एक जेट एयरवेज़ के पायलाट पर हिंसक आचरण और नस्ली टिप्पणी का आरोप लगाया था। 
     
 *फुटबाल मैचों के चलते इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों में जब तब जातिभेद और नस्लभेद के कारण खेल बिगड़ता रहा है। खिलाड़ी* अनेक अवसरों पर विरोध दर्ज भी कर चुके है। फुटबाल को संचालित करने वाली राष्ट्रीय और विश्व संस्था फ़ीफ़ा ने अनेक अवसरों पर कड़े कदम भी उठाए हैं। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी ने रंगभेद और नस्लवाद फैलने वाले देशों और खिलाड़ियों को बार बार चेताया लेकिन रह रह कर अप्रिय स्वर उठते रहे हैं।  आईओसी चार्टर में बाक़ायदा यह उल्लेख है की *ओलंपिक खेल नस्लवाद और समावेशिता के खिलाफ हैं* और मानवजाति की एकता को दर्शाते हैं। सभी 206 सदस्य देश एक साथ शांति से रहते और खेलते हैं और भोजन, विचारो और भावनाओं को साझा करते हैं। *जाति, रंग, लिंग, यौन, भाषा, धर्म, राजनीति और अन्य प्रकार के किसी भी भेदभाव को फ़ीफ़ा, आईओसी, कामनवेल्थ गेम्स कमेटी* हमेशा से विरोध करते आए हैं।                                                                                                                                                                           
*वेस्ट इंडीज के दिग्गज गेंद बाज माइकल होल्डिंग तो यहाँ तक कह चुके* हैं कि जब तक समाज नस्लवाद के विरुद्ध उठ खड़ा नहीं होता हल निकलना मुश्किल है और यह बीमारी समाज और दुनियाभर के मानवों को सताती रहेगी।  दुनियाभर के खिलड़ियों ने हमेशा नस्ल, रंग और जाति के भेदभाव के विरोध में सुर से सुर मिलाया। *पेले, माराडोना, क्लाइव लायड, गैरी सोबर्स, विव रिचर्ड्स, गावसकर, कपिल, जैसी ओवांस, मोहम्मद अली ध्यान चन्द जैसे महान* खिलाड़ियों ने खेलों से नस्ल और रंग को दूर रखने का भरसक प्रयास किया लेकिन यह गंभीर मसला सिर्फ़ खिलाड़ियों की समस्या नहीं है। होल्डिंग ठीक कह रहे हैं कि जब तक पूरा समाज, संपूर्ण विश्व नेक नीयत के साथ हल नहीं खोजेगा, खेल बिगड़ता रहेगा और विवाद होते रहेंगे।

Rajender Sajwan

Rajender Sajwan
Senior, Sports Journalist

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